कोरोना संक्रमण में बेहद संवेदनशील अंग हैं नाक, चार दिन में एक करोड़ तक संख्या बढ़ा लेता हैं वायरस

कोरोना वायरस की जब से शुरुआत हुई हैं तभी से वैज्ञानिक और शोधकर्ता लगातार इससे जुड़ी रिसर्च कर रहे हैं ताकि इसके बारे में जानकर इसको पहचाना जाए और रोकने के उचित प्रयास किए जाए। हाल ही में हुई एक रिसर्च में पाया गया कि नाक बेहद संवेदनशील अंग हैं क्योंकि यह वायरस नाक में घुसकर मात्र चार दिन में एक करोड़ तक अपनी संख्या बढ़ा लेता हैं। शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए फेस मास्क या कपड़े से सिर्फ मुंह को ही नहीं, बल्कि नाक को भी अच्छे से ढंकना बेहद जरूरी है।

यह शोध नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा की गई हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक नए कोरोना वायरस के लिए गले या फेफड़ों की तुलना में नाक में मौजूद कोशिकाओं को निशाना बनाना ज्यादा आसान होता है। इनमें टिक कर कोरोना वायरस महज चार दिन में खुद की एक करोड़ से ज्यादा प्रतियां बना लेता है। नाक में संख्या बढ़ाने के साथ ही कोरोना वायरस धीरे-धीरे यह श्वासनली के रास्ते गले और फेफड़ों में भी फैलने लगता है। शोधकर्ताओं की सलाह है कि कोरोना संक्रमण से बचने के लिए नाक को मास्क से अच्छे से ढंकना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही कपड़े के मास्क को समय-समय पर साफ करते रहना बेहद जरूरी है।

डॉ. रिचर्ड बाउचर के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने कोरोना से संक्रमित मरीजों की नासिकाओं, श्वासनली और फेफड़ों से लिए गए नमूनों का विश्लेषण किया। इसके साथ ही उन्होंने स्वस्थ लोगों के इन्हीं अंगों में मौजूद ऊतकों को लैब में कोरोना के संपर्क में रखकर उन पर पड़ने वाले असर का भी अध्ययन किया। इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि नसिका में मौजूद ‘नेसल एपिथीलियम' नाम की कोशिकाएं कोरोना वायरस का सबसे पहला शिकार बनती हैं। उनमें फेफड़ों की तुलना में एक हजार गुना ज्यादा वायरस ठिकाना बना सकते हैं।

डॉ. बाउचर ने नाक में मौजूद ‘एसीई-2 रिसेप्टर’ की अधिकता को कोरोना संक्रमण के प्रति ज्यादा संवेदनशील होने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। पहले के अध्ययनों में भी यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि एसीई-2 रिसेप्टर ही कोरोना वायरस को हमलावर बनाने वाले ‘स्पाइक प्रोटीन’ को सक्रिय करता है। इस वजह से वायरस को नाक में अपनी संख्या तेजी से बढ़ाने में मदद मिलती है।

इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने नाक में महज चार दिन के अंदर वायरस की एक करोड़ प्रतियां पाई। वहीं फेफड़ों में यह संख्या 10 हजार के करीब थी, जो कि नाक की अपेक्षा कहीं गुना कम है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच फेस मास्क का ढंग से उपयोग जरूरी है और मास्क से मुंह के साथ नाक को भी अच्छे से कवर करना चाहिए।