2 घंटे 21 मिनट की फिल्म, IMDb पर मिली 8.6 रेटिंग, क्लाइमैक्स देख रह जाएंगे स्तब्ध, कन्नड़ फिल्म ने झकझोरा मन

दक्षिण भारतीय सिनेमा की एक और सामाजिक रूप से झकझोर देने वाली फिल्म — ‘केरेबेटे’ — ओटीटी पर दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींच रही है। केजीएफ, पुष्पा और कांतारा जैसी मेगा हिट्स के बाद यह एक और उदाहरण है कि साउथ सिनेमा अब केवल बड़े बजट और एक्शन पर ही नहीं, बल्कि गहन सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों से भी अपनी पहचान बना रहा है।

1 मई 2025 को अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई केरेबेटे IMDb पर 8.6 की शानदार रेटिंग के साथ सुर्खियों में है। इस फिल्म का निर्देशन किया है राजगुरु ने और इसकी कहानी जितनी भावनात्मक है, उतनी ही कठोर सामाजिक सच्चाइयों को भी दर्शाती है।

कहानी क्या है?

फिल्म की कहानी एक गरीब लेकिन साहसी युवक ‘तस्कर नागा’ (गौरीशंकर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी विधवा मां के साथ अपनी पैतृक ज़मीन को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। नागा का जीवन सामान्य नहीं है—उसकी आर्थिक स्थिति खराब है, लेकिन उसका आत्मसम्मान बहुत ऊंचा।

इसी दौरान उसकी जिंदगी में आती है मीना (बिंदु शिवराम)। दोनों के बीच प्रेम पनपता है, लेकिन यह प्रेम उनके समाज के लिए स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि दोनों की जाति अलग है। फिल्म यहीं से मोड़ लेती है, जब प्रेम कहानी जातिगत राजनीति और सामाजिक कलंकों में उलझ जाती है।

प्यार, जाति और विद्रोह

फिल्म में नागा और मीना (बिंदु शिवराम) के बीच पनपते प्यार को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कहानी तब मोड़ लेती है जब मीना अचानक गायब हो जाती है और कुछ समय बाद गर्भवती होकर लौटती है। यही हिस्सा फिल्म का सबसे भावनात्मक और रहस्यपूर्ण सेक्शन है, यह पूरी घटना दर्शकों को भावनात्मक रूप से हिला देती है और क्लाइमैक्स में फिल्म उस बिंदु पर पहुंच जाती है जहां तक कोई उम्मीद नहीं करता।

इस हिस्से में फिल्म जातिगत अन्याय, महिलाओं पर अत्याचार और पितृसत्तात्मक सोच को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है। यह कोई परीकथा नहीं, बल्कि भारतीय ग्रामीण समाज की एक कड़वी सच्चाई है।

जातिगत अत्याचार और समाज का क्रूर सच

‘केरेबेटे’ सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि समाज में फैले जातिगत अन्याय, पितृसत्ता और दलित उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों को संवेदनशीलता से उजागर करती है। फिल्म का आखिरी 20 मिनट दर्शकों को ऐसी भावनात्मक यात्रा पर ले जाता है, जिसे भुला पाना मुश्किल है।

समाज का आईना है 'केरेबेटे'

‘केरेबेटे’ केवल एक प्रेम कहानी या पारिवारिक ड्रामा नहीं है—यह फिल्म समाज का आईना है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे जातिगत भेदभाव आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद है और कैसे यह लोगों की ज़िंदगी बर्बाद कर देता है। नागा और मीना की प्रेम कहानी इसी अन्याय का शिकार बनती है।

फिल्म में दलित समुदाय पर होने वाले अत्याचारों को बिना लाग-लपेट के दिखाया गया है। साथ ही, यह भी बताया गया है कि कैसे प्रेम, सम्मान और अधिकार जैसी भावनाएं केवल कुछ जातियों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।

प्राकृतिक सौंदर्य और सिनेमैटोग्राफी

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी इसकी एक और बड़ी ताकत है। नदियों, जंगलों और गांव के वातावरण को बेहद खूबसूरती और सादगी के साथ फिल्माया गया है। इससे दर्शक कहानी से और भी गहराई से जुड़ जाते हैं।

ग्रामीण जीवन की चुनौतियां, उसके रीति-रिवाज, परिवारों के भीतर की जटिलताएं और एक मां-बेटे का संघर्ष—यह सब इतने स्वाभाविक ढंग से दिखाया गया है कि दर्शक भावनात्मक रूप से फिल्म में खो जाते हैं।

किराए पर कैसे देखें?

‘केरेबेटे’ अमेज़न प्राइम वीडियो पर फिलहाल रेंट पर उपलब्ध है। इसे ₹99 देकर 30 दिनों के अंदर कभी भी देखा जा सकता है। एक बार प्ले करने के बाद इसे 48 घंटे तक देखा जा सकता है।

‘केरेबेटे’ उन फिल्मों में से एक है जिसे केवल देखा नहीं, महसूस किया जाता है। यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर कर देती है—क्या हमारे समाज में बदलाव संभव है? क्या प्रेम, आत्म-सम्मान और न्याय की भावना जाति, धर्म और परंपराओं से ऊपर उठ सकती है?

अगर आप सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम मानते हैं, तो 'केरेबेटे' आपकी वॉचलिस्ट में जरूर होनी चाहिए।

अस्वीकरण: यह लेख फिल्म की कहानी और सामाजिक संदेशों पर आधारित है। इसमें किसी विशेष जाति, वर्ग या समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया है।