साठ के दशक में जब शशि कपूर ने बतौर अभिनेता फिल्मों में काम करना शुरू किया, तब उनके साथ एक समस्या पैदा हो गई थी। उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल, लेकिन उनके अभिनय की तारीफ हो रही थी। निर्माता निर्देशक शशि कपूर को अपनी फिल्मों में लेना चाहते थे लेकिन यह हो नहीं पा रहा था। इसका कारण था अभिनेत्रियों का शशि कपूर से विरक्ति भाव। कोई नामचीन अभिनेत्री शशि कपूर के साथ काम करने को तैयार नहीं हो रही थी।
ऐसे आड़े वक्त में उस समय की सुपर तारिका नन्दा ने शशि कपूर का हाथ थामा और उन्होंने एक या दो नहीं पूरी आठ फिल्में शशि कपूर के साथ साइन कर लीं। नन्दा का शशि कपूर को इस तरह से साथ देना अपने समय में खासा चर्चा का विषय रहा था।
अपने एक साक्षात्कार में नन्दा को अपना बेहतरीन मेंटर बताने वाले शशि कपूर ने वर्ष 1961 में नन्दा में के साथ पहली बार दो रोमांटिक फिल्मों चारदीवारी और मेहंदी लगे मेरे हाथ में काम किया था। यह दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थीं। इन फिल्मों की सफलता के बाद भी शशि कपूर को अन्य नायिकाओं ने कोई तवज्जो नहीं दी थी। ऐसे समय में नन्दा ने लगातार कई फिल्मों में शशि कपूर के साथ जोड़ी बनाई। इस जोड़ी की सर्वाधिक हिट फिल्म थी 'जब जब फूल खिले' (1965)। इस फिल्म की सफलता में जहाँ शशि कपूर और नन्दा का बेहतरीन अभिनय का हाथ रहा, वहीं दूसरी ओर बॉक्स ऑफिस पर इसका परचम लहराने में इसके संगीत ने अहम् भूमिका निभाई थी। कल्याणजी आनन्दजी के संगीत से सजे इसके गीत फिल्म प्रदर्शन के कई सालों बाद भी श्रोताओं और दर्शकों की जुबान पर रहे थे। इस फिल्म के गीतों में लता मंगेशकर का गाया 'ये समां समां है ये प्यार का किसी के इंतजार का दिल ना चुरा ले कहीं मौसम बहार का', मोहम्मद रफी की आवाज में गाया 'एक था गुल और एक थी बुलबुल...', 'यहाँ मैं अजनबी हूं, मैं जो हूं बस वही हूं' को आज भी दर्शक गुनगुनाते हैं।
90 के दशक में जयपुर के फिल्म वितरक और फिल्म निर्माता नारायण दास माखीजा ने शशि कपूर नंदा की इस क्लासिक रोमांटिक फिल्म का रीमेक 'राजा हिन्दुस्तानी' के नाम से बनाया था। 'राजा हिन्दुस्तानी' ने जहाँ आमिर खान की असफलता को धोया वहीं दूसरी ओर इस फिल्म ने करिश्मा कपूर को बेहतरीन अभिनेत्री के तौर पर स्थापित किया था। धर्मेश दर्शन के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने अपने समय में जबरदस्त सफलता प्राप्त की थी। 'राजा हिन्दुस्तानी' की सफलता में भी जहाँ अदाकारों के अभिनय का योगदान था, वहीं दूसरी ओर इस फिल्म के गीत-संगीत ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी। विशेष रूप से कल्पना अय्यर, आमिर खान, करिश्मा कपूर और प्रतिभा सिन्हा पर फिल्माया गया 'परदेसी परदेसी जाना नहीं मुझे छोड़ कर मुझे छोडक़र परदेसी मेरे यारा वादा निभाना, मुझे याद रखना कहीं भूल न जाना' आज भी दर्शकों के जेहन में घूमता है। इस फिल्म का बेहतरीन संगीत नदीम श्रवण ने दिया था।इन तीन फिल्मों के अतिरिक्त शशिकपूर नंदा की जोडी मोहब्बत इसी को कहते हैं (1965), नीेद हमारी ख्वाब तुम्हारे (1966), राजा साहब (1969) और रूठा न करो (1970) में भी नजर आई थी। नंदा ने भी अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि उनके सर्वाधिक पसंदीदा नायक शशि कपूर हैं।