संजय लीला भंसाली निर्देशित 'पद्मावती' को लेकर चल रहा विरोध अब राजस्थान सहित अखिल भारतीय स्तर पर होने लगा है। राजस्थान से उठी विरोध की यह आँधी धीरे-धीरे पूरे भारत पर छाने लगी है। पिछले कुछ दिनों से टीवी के एक प्रमुख चैनल ने इसके विरोध में जंग छेड रखी है, जो इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि 'पद्मावती' को राजनीतिक मोर्चे पर शतरंज के मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जा है। बड़े अफसोस की बात है हमारे देश में जहां बोलने की आजादी है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है वहां एक फिल्मकार की कल्पना पर विरोध दर्ज कराया जा रहा है। सिनेमा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है जिसके जरिये कल्पनाओं को परवाज मिलती है। इस माध्यम से दर्शकों को वह दिखाया जाता है जिसकी वह सिर्फ कल्पना करता है ऐसे में क्यों कर एक निष्णात निर्देशक की फिल्म को बलि का बकरा बनाया जा रहा है यह समझ से परे है।
हिन्दी सिनेमा का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तब निर्माता निर्देशक, लेखक, संगीतकार, गीतकार संजय लीला भंसाली का जिक्र जरूर होगा, जिसमें उनकी उपलब्धियों के साथ ही पद्मावती का एक काला अध्याय भी शामिल होगा। भंसाली ने भारतीय सिनेमा को ब्लैक, हम दिल दे चुके सनम, देवदास और बाजीराव मस्तानी जैसी फिल्में दी हैं जो मील का पत्थर हैं। ऐसे में उनकी फिल्म ‘पद्मावती’ का क्यों कर विरोध हो रहा है यह समझ से बाहर है।
वायकॉम 18 द्वारा निर्मित 'पद्मावती' 180 करोड के भारी बजट से तैयार की गई है। फिल्म के विरोध के चलते इसका प्रदर्शन सम्भव नहीं लगता है। सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने हाल ही में दिए अपने कुछ बयानों से इस फिल्म के प्रदर्शन पर पूरी तरह से रोक के आसार जगा दिए हैं। वर्तमान में इसके विरोध में जो परिस्थितियां बन चुकी हैं उनसे स्पष्ट है कि 'पद्मावती' आगामी 1 दिसम्बर को सिनेमाघरों का मुंह नहीं देखेगी। यदि ऐसा होता है तो निर्माता निर्देशक को 180 करोड का भारी नुकसान होगा, जिससे बॉलीवुड बॉक्स ऑफिस को भी भारी क्षति होगी।
क्या निर्माता कम्पनी इतना भारी नुकसान बर्दाश्त कर पाएंगी। क्या वह इसकी वसूली का कोई और तरीका ईजाद करेगी या फिर सिर्फ विदेशी वितरण अधिकारों के जरिए प्राप्त होने वाली आय पर ही स्वयं को संतुष्ट करेगी। ये कुछ ऐसे प्रश्न हैैं जो इन दिनों हर उस दर्शक के मन में उठ रहे हैं जो थोड़ा सा भी 'अर्थशास्त्र' को समझता है।
लाइफ बैरी डॉट कॉम ने भी इस मुद्दे पर गहराई से विचार किया है। हमारे आंकलन के अनुसार इस फिल्म की निर्माता कम्पनी अपनी 180 करोड की भारी राशि को वसूलने के लिए भंसाली निर्देशित इस फिल्म को अपने टीवी चैनल कलर्स पर दर्शकों के सामने ऐतिहासिक धारावाहिक के रूप में पेश कर सकती है। टीवी के दर्शक ऐतिहासिक व पौराणिक धारावाहिकों को बड़े चाव से देखता है। टीवी के दर्शकों के लिए इस फिल्म में उन दृश्यों को जोड़ा जा सकता है जिन्हें सम्पादन की टेबल पर काट दिया गया है। साथ ही उन दृश्यों को भी जोडा जा सकता है जो शूट तो कर लिए गए होंगे लेकिन जिन्हें सम्पादन की टेबल पर जाने से पहले हटा दिया गया होगा। इन दृश्यों से फिल्म की लम्बाई में वृद्धि होगी जो इसे धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत करने में मददगार होंगे।
एक सवाल फिर भी सामने खड़ा नजर आता है क्या भंसाली इस बात की घोषणा करेंगे कि इस फिल्म या धारावाहिक का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सरोकार नहीं है। यह पूरी तरह से काल्पनिक है। इस बात की संभावना कम नजर आती है कि भंसाली इस तरह की कोई शपथ देने को तैयार होंगे। उनकी फिल्म ऐतिहासिक घटनाक्रम पर आधारित है ऐसे में वे इसे काल्पनिक कैसे करार दे सकते हैं। सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने कहा है कि प्रमाण पत्र के लिए आई फिल्म की कॉपी में इस बात की घोषणा नहीं की गई है, जिसके चलते इसे पास नहीं किया जा सकता।
अभी 1 दिसम्बर आने में 10 दिन का समय शेष है। इन दस दिनों में बहुत कुछ हो सकता है। हो सकता है विरोध करने वाले अपना विरोध बंद कर दें, सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष फिल्म प्रमाण पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दें और भंसाली राजपूत नेताओं को अपनी फिल्म प्रदर्शन से पूर्व दिखा दें। ऐसे में फिल्म प्रदर्शन की राह आसान हो जाएगी और फिल्म का प्रदर्शन हो सकेगा। हालांकि इस प्रक्रिया में वक्त ज्यादा भी लग सकता है और फिल्म अपनी तय तिथि 1 दिसम्बर के स्थान पर 8 दिसम्बर को भी प्रदर्शित हो सकती है। दर्शकों में इस फिल्म को देखने की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। अब देखने वाली बात यह है कि आने वाले दिनों में ऊँट किस करवट बैठता है। फिल्म प्रदर्शित होगी या फिर अप्रदर्शित होकर इतिहास के पन्नों में अपना नाम लिखवायेगी यह तो वक्त के गर्भ में छिपा है।