जावेद अख्तर: जो पैसा कमाने का जरिया बन सका उसे ही एजुकेशन मान लिया

पिछले दो दिन से जयपुर में चल रहे लिटरेचर फेस्टिवल में बॉलीवुड के कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। दो दिन पूर्व गुलजार अपनी निर्देशिका बेटी मेघना गुलजार के साथ आए थे और कल बॉलीवुड की समर्थ अभिनेत्री और सुप्रसिद्ध कथा, पटकथा, संवाद लेखक जावेद अख्तर ने इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। मीडिया ने अनेक पहलुओं पर बातचीत करते हुए जावेद अख्तर ने देश के एजुकेशन सिस्टम पर तीखी टिप्पणी की। उनका कहना था कि आज एजुकेशन वो है जिससे पैसा कमाया जा सके. . . . बाकी सब बेकार।

उन्होंने कहा कि, पिछले 50 बरसों से हमारी शिक्षा प्रणाली की प्राथमिकता में साहित्य को कहीं कोई जगह नहीं मिली है। इसलिए जो पैसा कमाने का जरिया बन सके उसी को एजुकेशन माना जाने लगा और बाकी सब बेकार मान लिए गए। वहीं जुबान भी छूटती चली गई। जबकि जुबान यानी भाषा सभ्यता, संस्कृति और विरासत को आगे ले जाती है। जुबान से कट गए तो जमीन से कट जाएंगे। ऐसा हमारे मुल्क में हुआ। तभी तो जड़ों से कटने लगी थी हमारी धरोहर। नई पीढ़ी को हमने लैट डाउन किया लेकिन उसने खुद बखुद जड़ों से जुडऩे की तरफ कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं।

अपने बयान में उन्होंने आगे बात करते हुए कहा कि, हर दौर की फिल्म होती है। जैसा फिल्म मेकर होता है वैसा ही समाज होता है और जैसा समाज होता है वैसी ही फिल्में। ‘दो बीघा जमीन’ फिल्म एक किसान के जमीन के लिए पर बनी फिल्म थी जो सुपरहिट हुई। आज हजारों किसान खुदकुशी कर रहे हैं लेकिन इस पर कोई सुपरहिट फिल्म नहीं बन सकती क्योंकि दर्शक उससे जुड़ नहीं पाएंगे।