जेएलएफ (जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल Jaipur Literature Festival 2019) के सेशन जान निसार और कैफी में शिरकत करते हुए जहाँ जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने दर्शकों को अपनी टिप्पणियों से सोचने पर मजबूर किया वहीं दूसरी ओर उनकी पत्नी अभिनेत्री शबाना आजमी ने भी कुछ ऐसा कहा, जिससे बॉलीवुड के वर्तमान गीतों को लेकर एक तीखी बहस होने की संभावना बन जाती है।
इस मौके पर शबाना आजमी (Shabana Azmi) ने कहा कि, मैं दर्शकों को गलत लफ्जों वाले गानों को सुपरहिट बनाने के लिए क्लीन चिट बिलकुल नहीं दूंगी। शादियों में छोटे-छोटे ‘बच्चे मैं तंदूरी मुर्ग हूँ गटक जा मुझे अल्कोहल से....’ जैसे अश्लील गीतों पर डांस करते हैं। बच्चों के इस सेक्सुअलाइजेशन के लिए पेरेंट्स ही जिम्मेदार हैं।
घरों के लिए किताबें इंटीरियर डेकोरेटर खरीदते हैं, पेरेंट्स नहींवहीं जावेद अख्तर का कहना था कि आजकल कितने पेरेंट्स खुद किताबें पढ़ते हैं या अपने बच्चों को किताबें खरीदकर देते हैं या पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के कंसर्ट में लेकर जाते हैं। ऐसा हो तो पेरेंट्स के साथ क्लासिकल कंसर्ट में बच्चे चाहे बोर हों, लेकिन उनके शौक की इज्जत करते हैं और आगे जाकर खुद उस शौक से जुड़ जाते हैं। आजकल तो हाल यह है कि घरों में सजावट के लिए किताबें भी अब इंटीरियर डेकोरेटर खरीदते हैं, वो भी सोफे और परदे से मैच करती हुई।
मंच पर उपस्थित शबाना आजमी ने इस मौके पर अपने पिता व प्रोग्रेसिव राइटर्स में से एक कैफी आजमी की नज्म ‘औरत’ की पंक्तियाँ सुनाते हुए बताया कि कैसे उस जमाने में प्रोग्रेसिव राइटर्स मूवमेंट से जुड़े शायर इंकलाब ही नहीं मुहब्बत पर भी बेहद शिद्दत के साथ लिखते थे। अपने पिता कैफी आजमी की 70 साल पहले लिखी इस नज्म में साफ दिखता है कि वे औरत और मर्द में फर्क नहीं करते थे। इसी नज्म को सुनकर उनकी माँ शौकत आजमी ने कैफी से शादी करने का फैसला लिया था। शबाना आजमी ने अपने पिता की जो नज्म सुनाई वो कुछ इस प्रकार है—
कद्र अब तक तेरी तारीख ने जानी ही नहीं
तुझ में शोले भी हैं बस अश्क-फिशानी ही नहीं
तू ह$की$कत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारी$ख का उनवान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे. . . .