1000 फिल्में, 2500 गाने और ओसामा भी था फैन, भारत की पहली महिला सिंगर की कहानी

जिस उम्र में बच्चे स्कूल की क्लासों में कविता रटते हैं, उस उम्र में एक बच्ची कोलकाता के रेडियो स्टूडियो में सुरों का जादू बिखेर रही थी। वही बच्ची आगे चलकर हिंदी सिनेमा की आवाज़ बन गई—एक ऐसी आवाज़, जिसने दशकों तक न सिर्फ स्क्रीन पर अभिनेत्रियों को जीवंत किया, बल्कि हर दिल में एक खास जगह बना ली। हम बात कर रहे हैं अलका याग्निक की, जिनकी संगीत यात्रा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं।

संगीत की ओर पहला कदम: बचपन से गूंजती आवाज़

20 मार्च 1966 को कोलकाता में जन्मी अलका याग्निक का संगीत से रिश्ता छह साल की उम्र में ही जुड़ गया था। रेडियो स्टूडियो में छोटी सी बच्ची जब गाने जाती थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यही आवाज़ एक दिन पूरे देश का सुर बन जाएगी। महज 10 साल की उम्र में वे अपनी मां के साथ मुंबई आ गईं, जहां संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। हालांकि कल्याणजी ने उन्हें थोड़ा और इंतजार करने को कहा, क्योंकि उनकी आवाज़ में अभी कुछ परिपक्वता आनी बाकी थी।

पहला मौका और बॉलीवुड की दहलीज़ पर कदम

साल 1979 में अलका को राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म पायल की झनकार में पहली बार गाने का मौका मिला। तीन साल बाद, 1982 में राजेश रोशन की फिल्म हमारी बहू अल्का में उन्होंने ‘हम तुम रहेंगे’ गाया। यह शुरुआत थी उस सफर की, जो बाद में हिंदी फिल्म संगीत की सबसे चमकदार आवाज़ में तब्दील हुआ।

ट्रेन से शुरू हुई एक प्रेम कहानी

1986 में दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अलका की मुलाकात नीरज कपूर से हुई, जो बाद में उनके जीवनसाथी बने। पहली नजर में दोनों ने एक-दूसरे को लेकर अलग-अलग धारणाएं बना ली थीं। नीरज को अलका एक बहुत ही सजी-धजी और प्रभावशाली महिला लगीं, वहीं अलका को उनका लिबास अजीब लगा। मगर यही मुलाकात धीरे-धीरे दोस्ती और फिर प्यार में बदल गई। दो साल की बातचीत और समझ के बाद, 1988 में उन्होंने शादी करने का फैसला किया। उसी साल रिलीज़ हुआ फिल्म तेजाब का गाना 'एक दो तीन', जिसने अलका को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया।

'एक दो तीन' – जिसने बनाया स्टार

अलका की गायिकी को असली उड़ान मिली 1988 की ब्लॉकबस्टर फिल्म तेजाब से, जिसमें माधुरी दीक्षित पर फिल्माया गया गीत ‘एक दो तीन’ लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया। यह गाना न सिर्फ उस समय का चार्टबस्टर बन गया, बल्कि अलका याग्निक के करियर की सबसे बड़ी पहचान भी। उन्होंने बताया कि जब उन्हें इस गाने के बोल दिए गए—1, 2, 3, 4...—तो उन्हें यह अजीब और बेमतलब लगा। लेकिन जैसे-जैसे वे गाने में उतरीं, इसकी धुन और एनर्जी ने उन्हें अपने आप में समा लिया।

मधुर धुन, जो बनी माधुरी की पहचान

इस गाने के निर्माण से जुड़ा किस्सा भी उतना ही रोचक है। संगीतकार लक्ष्मीकांत, जिन्हें पान खाने का बेहद शौक था, पान चबाते-चबाते इस गाने की धुन बना रहे थे। अलका ने बताया कि हर अंतरे में एक खास मजा था, लेकिन आखिरी अंतरा गाते हुए उन्हें जो संतोष मिला, वो अविस्मरणीय था। माधुरी दीक्षित की धमाकेदार परफॉर्मेंस ने इस गाने को दर्शकों के लिए दृश्य और श्रव्य दोनों रूपों में अमर बना दिया।

‘मेरे अंगने में’ से मिली पहचान

हालांकि 'एक दो तीन' ने उन्हें स्टार बना दिया, लेकिन उनकी शुरुआती लोकप्रियता फिल्म लावारिस के गाने ‘मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है’ से आई। यह गाना उन्हें हर मंच पर पहचान दिलाने लगा था और तभी से उनका नाम बॉलीवुड की अग्रणी गायिकाओं में गिना जाने लगा।

दुनियाभर में दीवाने, ओसामा बिन लादेन भी फैन

अलका याग्निक की आवाज़ सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में पसंद की जाती है। यहां तक कि कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन भी उनके गानों का दीवाना था। जब अमेरिका ने उसे मार गिराया, तब उसकी लाइब्रेरी से अलका याग्निक के गानों की रिकॉर्डिंग्स भी मिलीं। यह बात उनके सुरों की अंतरराष्ट्रीय पहुंच को दर्शाती है।

अलका याग्निक की कहानी एक साधारण लड़की के असाधारण सफर की मिसाल है। छह साल की उम्र में कोलकाता से शुरू हुई ये यात्रा आज भी लाखों दिलों को झंकृत करती है। ‘एक दो तीन’ जैसा गाना सिर्फ एक धुन नहीं, बल्कि उनकी मेहनत, जज्बे और काबिलियत का प्रतीक है। हिंदी सिनेमा की स्वर रानी बनने तक का यह सफर न केवल प्रेरक है, बल्कि भावनाओं से भी भरपूर है।