2 घंटे 27 मिनट की डर और रहस्य से भरी दास्तान, चाहकर भी बंद नहीं होती आँख, यह है साइको थ्रिलर ‘ऑपरेशन रावन’

अगर आप उन दर्शकों में शामिल हैं जिन्हें साइको थ्रिलर, मर्डर मिस्ट्री और मनोवैज्ञानिक जटिलता वाली फिल्में पसंद हैं, तो साउथ की हालिया रिलीज़ फिल्म ‘ऑपरेशन रावन’ आपके लिए एक जबरदस्त अनुभव हो सकती है। फिल्म को साल 2024 में सिनेमाघरों में रिलीज़ किया गया था और अब यह डिजिटल दर्शकों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है।

क्या आप कभी उस अंधेरे से गुज़रे हैं जहाँ डर सिर्फ साया नहीं, बल्कि आपका पीछा करता है? जहाँ सवाल यह नहीं होता कि अगला कौन मरेगा, बल्कि यह कि अगला शिकार बनने से पहले आप कितनी सच्चाई जान पाएंगे? अगर हां, तो ऑपरेशन रावन जैसी फिल्में आपको उसी खौफनाक दुनिया में फिर से ले जाएंगी। यह महज एक फिल्म नहीं, बल्कि दो घंटे 27 मिनट की ऐसी साइकोलॉजिकल यात्रा है जो आपको बार-बार सोचने पर मजबूर करेगी—क्या बुराई हमेशा दिखती है, या वह हमारी आंखों के सामने ही छिपी रहती है?

कहानी जो रोंगटे खड़े कर दे, एक हैवान, जो रावण से भी ज़्यादा खतरनाक है


फिल्म की कहानी एक ऐसे रहस्यमयी और विक्षिप्त अपराधी के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जो लड़कियों को उनके विवाह से पहले अगवा करता है, उनका शारीरिक शोषण करता है और फिर निर्ममता से उनकी हत्या कर देता है। यह अपराध धीरे-धीरे एक भयावह पैटर्न में तब्दील हो जाता है और पूरे इलाके में दहशत का माहौल बना देता है। पुलिस जब मामले की तह में जाने की कोशिश करती है, तो उन्हें सामने से कोई सुराग नहीं मिलता—सिर्फ लाशें, दर्द और दहशत।

पुलिस को मजबूरन इस सीरियल किलर को पकड़ने के लिए एक विशेष अभियान शुरू करना पड़ता है, जिसे 'ऑपरेशन रावन' नाम दिया जाता है। इस केस को सुलझाने में पुलिस को जितनी चुनौतियाँ आती हैं, उतनी ही मानसिक रूप से थका देने वाली जाँच का सामना पत्रकारों को भी करना पड़ता है, जो इस रहस्य को उजागर करने की कोशिश में लगे होते हैं।

जब पत्रकार बनता है इंसाफ की लड़ाई का सिपाही

मुख्य पात्र अर्जुन (रक्षित अतलूरी) एक युवा पत्रकार है जो सत्ता की गंदगी को उजागर करने में लगा है। जब वह अपने सहयोगी श्रुति (संगीर्थना विपिन) के साथ एक भ्रष्ट राजनेता के स्टिंग ऑपरेशन में जुटा होता है, तभी अचानक यह हत्या कांड उनके सामने आ खड़ा होता है। पत्रकारिता से शुरू हुई यह यात्रा अब एक खतरनाक साइको किलर की तलाश में बदल जाती है। अर्जुन को जल्द ही अहसास होता है कि यह मामला केवल क्राइम रिपोर्टिंग का नहीं, बल्कि इंसाफ और नैतिकता की परीक्षा भी है।

फिल्म की खास बात है इसकी पटकथा और सिनेमैटोग्राफी, जो शुरू से ही दर्शकों को एक डरावने और सस्पेंस से भरे वातावरण में ले जाती है।

क्लाइमेक्स: जब आपकी सोच भी धोखा खा जाए

जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, रहस्य और सस्पेंस की परतें खुलती जाती हैं। हत्यारा कौन है? वह ऐसा क्यों कर रहा है? क्या ये सब एक मानसिक विकृति है या इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक या सामाजिक मकसद छिपा है? फिल्म इन सभी सवालों के जवाब धीरे-धीरे देती है, और जब क्लाइमेक्स आता है, तो दर्शक सन्न रह जाता है। यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है कि इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी आंखों के सामने की सच्चाई को पहचान न पाना ही है।

अदाकारी, निर्देशन और तकनीक: हर पहलू में दमदार

वेंकट सत्य के निर्देशन में बनी यह फिल्म तकनीकी रूप से भी बेहद प्रभावशाली है। कैमरा वर्क, साउंड डिज़ाइन और बैकग्राउंड स्कोर, सब कुछ मिलकर एक ऐसा माहौल रचते हैं जो दर्शकों को सीट से बांधकर रखता है। निर्देशक वेंकट सत्य ने इस कहानी को धीमे लेकिन प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया है और क्लाइमैक्स में एक ऐसा मोड़ दिया है, जिसकी उम्मीद शायद ही कोई दर्शक करता हो।

रक्षित अतलूरी ने अपने किरदार में पूरी संजीदगी दिखाई है, वहीं संगीर्थना विपिन ने भी साहसी और संवेदनशील पत्रकार की भूमिका बखूबी निभाई है। फिल्म का एडिटिंग पैटर्न सधा हुआ है, और इसकी गति दर्शकों को बोर नहीं होने देती, भले ही कहानी गहराई में जाती हो।

IMDb रेटिंग और दर्शकों की प्रतिक्रिया

2024 में रिलीज हुई इस फिल्म को IMDb पर 7.7/10 की मजबूत रेटिंग मिली है। दर्शकों ने खासतौर पर फिल्म की यूनिक स्टोरीलाइन, कसे हुए स्क्रीनप्ले और क्लाइमेक्स को सराहा है। बहुत से समीक्षकों ने इसे दक्षिण भारतीय सिनेमा के सबसे प्रभावशाली साइको थ्रिलर में से एक बताया है।

हालांकि फिल्म की गति कुछ स्थानों पर धीमी जरूर लगती है, लेकिन इसकी साइकोलॉजिकल परतें, रहस्य और अप्रत्याशित मोड़ दर्शकों को अंत तक जोड़े रखते हैं। फिल्म के क्लाइमैक्स में एक ऐसा खुलासा होता है जो दर्शकों को चौंका देता है और यही बात इसे अन्य थ्रिलर फिल्मों से अलग बनाती है।

कहां देखें और क्यों देखें?


फिल्म Aha Video पर स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध है और चुनिंदा हिस्से यूट्यूब पर भी देखे जा सकते हैं। अगर आप अंधाधुन, रत्सासन और दृश्यम जैसी थ्रिलर फिल्मों के प्रशंसक हैं, तो ‘ऑपरेशन रावन’ आपकी सूची में ज़रूर होनी चाहिए। यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं देती, बल्कि समाज के उस अंधेरे कोने की ओर इशारा करती है, जिसे हम अकसर नजरअंदाज कर देते हैं। यह फिल्म विशेष रूप से उन दर्शकों के लिए उपयुक्त है जो गहन विषयवस्तु और मानसिक तनाव से जुड़ी कहानियों को पसंद करते हैं। चूंकि इसमें कुछ दृश्य बेहद संवेदनशील हैं, इसलिए इसे परिवार के साथ देखने की बजाय व्यक्तिगत अनुभव के तौर पर देखना बेहतर रहेगा।

डर का असली चेहरा यहीं है

‘ऑपरेशन रावन’ कोई टिपिकल क्राइम थ्रिलर नहीं, बल्कि एक साइकोलॉजिकल ब्लैक होल है जिसमें उतरने के बाद आप खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे। यह फिल्म हमें बताती है कि हैवान हमारे बीच ही होते हैं—वे सिर्फ अलग तरीके से मुस्कुराते हैं। एक ऐसी फिल्म जो आपका मनोविज्ञान हिला सकती है और समाज की खामोश त्रासदियों की ओर आपका ध्यान खींचती है, वह निश्चित तौर पर देखने लायक है।

यह फिल्म सिर्फ एक मर्डर मिस्ट्री नहीं, बल्कि समाज में मौजूद उन मानसिक विकृतियों की कहानी है, जो हमें कई बार देखने, सुनने या समझने में भी असहज महसूस कराती हैं। ‘ऑपरेशन रावन’ सस्पेंस, थ्रिल, भय और मनोवैज्ञानिक उलझनों का ऐसा मिश्रण है जो आपको अंत तक बाँधे रखता है।