200 करोड़ की लागत, 3सौ करोड़ी निर्देशक, क्या मिलेगी सफलता!

सोमवार रात 9 बजे निर्देशक अली अब्बास जफर ने ट्विट के जरिये जानकारी दी है कि उनकी अगली फिल्म ‘भारत’ का प्री प्रोडक्शन काम शुरू हो चुका है। ‘भारत’ फिल्म की तैयारियों को लेकर हम पूरे जोश में हैं। फिलहाल सलमान खान अपनी अगली ईद रिलीज रेस-3 में व्यस्त हैं। इससे फ्री होते ही वे ‘भारत’ [ 'भारत': ईद पर फिर असफल हो सकते हैं सलमान खान, बदलना होगा नाम ! ] का काम शुरू कर देंगे। सलमान खान के साथ अली अब्बास जफर की यह तीसरी फिल्म है। इससे पहले यह दोनों ‘सुल्तान’ और ‘टाइगर जिंदा है’ में काम कर चुके हैं। समाचारों में कहा जा रहा है कि यह सलमान खान के करियर की सबसे महंगी फिल्मों में से एक होगी। इसे 200 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा है। यह फिल्म 2014 में आई दक्षिण कोरियाई फिल्म ‘ओड टू माई फादर’ का आधिकारिक हिन्दी रीमेक है। इस फिल्म में सलमान खान 17 साल के युवा से लेकर 70 वर्ष के बुर्जुग आदमी तक का किरदार अदा करेंगे।

सब कुछ सही है लेकिन शंका है तो सिर्फ इस बात की कि क्या दर्शक सलमान खान को बुर्जुग व्यक्ति के रूप में देखना पसन्द करेगा। अब तक सलमान खान को दर्शकों ने रफ टफ में पसन्द किया है। इसके अतिरिक्त 200 करोड़ की लागत से बन रही इस फिल्म की कमाई को लेकर भी संशय व्यक्त किया जा रहा है। सलमान खान सफलता की गारंटी हैं लेकिन उनकी फिल्म की अधिकतम कमाई 340 करोड़ (टाइगर जिंदा है) तक रही है। ऐसे में 200 करोड़ की लागत वाली फिल्म को कम से कम अपनी लागत निकालने के लिए 350 करोड़ के आंकड़े को पार करना होगा।

बताया जा रहा है कि सलमान खान को लेकर अली अब्बास जफर ने जिस अंदाज में ‘भारत’ की पटकथा लिखी है उसमें एक्शन नहीं के बराबर और भावनाओं का तीव्र ज्वार है। अर्थात् दर्शकों को नरम दिल सलमान खान नजर आएंगे। सलमान खान ने जब ‘ट्यूबलाइट’ में अपनी इमेज से छेड़छाड़ की तो क्या नतीजा रहा था। फिल्म अपनी लागत वसूलने में असफल रही। ऐसे में क्योंकर यह उम्मीद की जाए कि दर्शक सलमान खान को इस रूप में पसन्द करेंगे। हालांकि अली अब्बास जफर अच्छे लेखक हैं। वे जानते हैं कि सलमान खान को किस रूप और किस अंदाज में पेश करने से वह सफलता प्राप्त करेंगे। उन्होंने ‘सुल्तान’ में सलमान खान का भिन्न रूप दर्शकों से परिचित कराया था। उसमें भी भावनाओं का तीव्र ज्वार था। आपसी रिश्तों की गहराई थी और पटकथा में मास अपील थी। ऐेसे में अभी से ‘भारत’ की सफलता व असफलता पर चिंतन करना बेमानी है। हिन्दी सिने दर्शक अब परिपक्व हो चुका है वह सपनों की दुनिया से बाहर आकर जमीनी हकीकत के चरित्रों को पसन्द कर रहा है ऐसे में वह क्योंकर ‘भारत’ को पसन्द नहीं करेगा।