क्यों हिट हो रही है ‘कबीर सिंह’, एक नजर उन कारणों पर

शाहिद कपूर के डेढ दशक लम्बे समय में पहली बार ऐसा हुआ है जब सोलो हीरो के तौर पर उनकी किसी फिल्म ने पहले दिन 20 करोड़ से ज्यादा का कारोबार करते हुए 3 दिन में बॉक्स ऑफिस पर 70 करोड़ की कमाई कर ली हो। ‘कबीर सिंह’ के रूप में उनको एक गेम चेंजर मिल गई, जिसमें उन्होंने जी जान लगा दी। फिल्म को युवा दर्शक (सिर्फ पुरुष) पसन्द कर रहे हैं। जिस तरह का किरदार उन्होंने निभाया है, वह फ्रस्टेड युवा का है, जिसे गुस्सा बहुत आता है। दर्शक कबीर सिंह को क्यों पसन्द कर रहे हैं यह सोच का विषय है। फिर भी डालते हैं एक नजर उन कारणों पर जो इसे सफल बना रहे हैं—

बेहतरीन अभिनय

वास्तविक जिन्दगी में शाहिद कपूर बिलकुल भी नशा नहीं करते हैं। ऐसे में उनके लिए ड्रग एडिक्ट गुस्सैल आदमी का रोल निभाना मुश्किल रहा होगा, लेकिन शाहिद ने ये अच्छे से निभाया। इसके अतिरिक्त उन्होंने वो सब काम किया है, जो भारतीय समाज में गलत समझा जाता है।

टूटे दिल की कथा

भारतीय सिनेमाई दर्शकों को वो फिल्म या उसके वो दृश्य ज्यादा पसन्द आते हैं जिसमें भावनाओं का ज्वार होता है। जहाँ किरदार उन्हें दुखी, निराश और हताश नजर आता है। कबीर सिंह में इन सब का समावेश बेहद खूबसूरती से किया गया है। फिल्म में प्यार, तकरार, हाहाकार, धोखा, दिल और रिश्तों का टूटना सब कुछ है। इसके साथ ही इन सब चीजों पर तडक़ा लगाता हुआ एक्शन भी है।

सनकी और जुनूनी आशिक

इसके बारे में तो शायद कुछ कहने की भी जरूरत नहीं है। कबीर सिंह में एक सनकी आशिक है और भारत में जिस तरह से रिजेक्शन बर्दाश्त न कर पाने की प्रथा चली आ रही है वो कहीं न कहीं इस फिल्म में भी दिखाई गई है।

लार्जर दैन लाइफ कैरेक्टर

शाहिद कपूर ने अपने करिअर में पहली बार कोई ऐसी भूमिका की है जो लार्जर दैन लाइफ है। ‘कबीर सिंह’ उनके करिअर में मील का पत्थर है। इस किरदार को दर्शक हमेशा याद रखेगा। जब कभी शाहिद की चर्चा होगी उन्हें ‘कबीर सिंह’ के रूप में देखा जाएगा।

पुरुषवादी मानसिकता

कबीर सिंह में जिस तरह से महिला चरित्रों को दिखाया गया है उससे निर्देशक की मानसिकता पर सवाल उठता है। संदीप रेड्डी वागा ने अपनी सोच को महिला किरदार पर थोपा है। महिलाओं के साथ जिस तरह से फिल्म में मारपीट, गाली-गलौच की गई है उससे स्पष्ट है कि संदीप पुरुषवादी मानसिकता का शिकार हैं। यही नहीं उन्होंने नायिका के परिवार वालों को भी इसी मानसिकता का शिकार दिखाया है। नायक नायिका को उसके घरवालों के सामने मारता है लेकिन वो कुछ नहीं करते। नायिका के साथ इतना कुछ होता है फिर भी वह कबीर सिंह को चाहती है इससे यह भी साफ झलकता है उसे भी यही सब कुछ पसन्द है। नायिका के किरदार के रूप में संदीप ने यही बताना चाहा है कि कितनी ही समानता की बातें कर ली जाएं लेकिन भारतीय नारी आज भी पुरुषों के अधीन रहना ही पसन्द करती है।

कल्ट फिल्मों में होगी शामिल

इस तरह की फिल्मों को पसन्द करने वाली सीमित दर्शक संख्या है। फिल्म ने 70 करोड़ की कमाई कर ली है, यह सही है लेकिन यह कमाई लम्बी नहीं है। इसका कारोबार 125 करोड़ से ज्यादा का नहीं होगा। 70 करोड़ की कमाई के बाद जो कमाई आएगी उसमें आधी से ज्यादा कमाई उन दर्शकों से होगी जो ‘अच्छी है’ सुनकर सिनेमाघरों में आएंगे। इस तरह के कंटेंट को पसंद करने वाली एक तय ऑडियंस है। इसमें सबसे ज्यादा युवा वर्ग है। युवाओं को ये फिल्म बहुत पसंद आ रही है और ये यकीनन एक चिंता का विषय है।

जातिवाद को नकारती है फिल्म

फिल्म में एक ओर ये दिखाने की कोशिश की गई है कि जातिवाद को लेकर किसी के प्यार को ठुकराना सही नहीं है। लेकिन यह संदेश देने में फिल्म एकदम नाकाम रही है और साथ ही साथ समाज में एक गलत संदेश भेज रही है। लडक़ी को पूरी तरह दबाकर रखने की प्रवृति के बावजूद लडक़ी शादी के लिए तैयार होगी, क्योंकि फिल्म में दो अलग-अलग जाति वालों की शादी दिखानी है।