Movie Review गली बॉय — रणवीर पर भारी पड़ी आलिया, किरदार के चलते दबे नजर आए सिंबा

Gully Boy Movie Review पिछले तीन माह से लगातार चर्चाओं में रही निर्देशिका जोया अख्तर की फिल्म ‘गली बॉय (Gully Boy)’ ने बॉक्स ऑफिस पर उम्मीदों के अनुरूप शुरूआत की है। फिल्म का ट्रेलर देखकर महसूस हुआ था कि जोया ने कहानी में सिर्फ रणवीर सिंह (Ranveer Singh) को ही प्रमुखता दी होगी लेकिन फिल्म देखने के बाद धारणा गलत साबित होती है। फिल्म में रणवीर (Ranveer Singh) के साथ-साथ आलिया भट्ट (Alia Bhatt), सिद्धान्त चतुर्वेदी (Siddhant Chaturvedi) और विजय राज को भी बराबर की हैसियत दी गई है। फिल्म देखने के बाद इस बात का अहसास भी होता है कि रणवीर सिंह (Ranveer Singh) का किरदार उतना मुखर नहीं हो पाया है जितना कि सिद्धान्त चतुर्वेदी का। सिद्धान्त (Siddhant Chaturvedi) इस फिल्म का सरप्राइज पैकेट साबित हुए हैं। उन्होंने अपने किरदार को शिद्दत के साथ जीया है। यह उनके चलने, बात करने के ढंग और अंदाज से साफ झलकता है। आलिया भट्ट (Alia Bhatt) बेहतरीन अभिनय करती हैं और यहाँ भी उन्होंने ऐसा ही किया है। कई ऐसे दृश्य हैं जहाँ अभिनय में रणवीर सिंह (Ranveer Singh) उनके सामने दबे-दबे नजर आते हैं। वैसे रणवीर का जो किरदार है वह पूरी तरह से ही दबा हुआ है। जोया अख्तर ने पटकथा में उसको मुखर होने ही नहीं दिया है। किरदार की मांग के अनुरूप रणवीर (Ranveer Singh) का अभिनय बेहतरीन है। इन तीन मुख्य सितारों के बाद सबसे बेहतरीन काम है विजयराज का जिन्होंने फिल्म में रणवीर के पिता की भूमिका निभाई है। इस अदाकार को हिन्दी सिनेमा के निर्देशकों ने बहुत कम करके आंका है। मौका मिलने पर वे इससे उम्दा अभिनय दर्शकों के सामने ला सकते हैं। फिल्म में कल्कि कोचलिन का किरदार सबसे छोटा है। अपनी भूमिका में उन्होंने सही निर्वाह किया है।

कथानक

गली बॉय (Gully Boy) मुम्बई के धारावी में रहने वाले मुराद (रणवीर सिंह Ranveer Singh) की कहानी है, जो गरीबी में जिन्दगी जीते हुए बड़े सपने देखते हुए स्वयं को अमीर बनाना चाहता है। वह अक्सर अपने दर्द को लफ्जों में तब्दील करते हुए नोटबुक में लिखता है। मुराद की जिन्दगी में उस समय भूचाल आ जाता है जब उसके पिता दूसरा निकाह कर लेते हैं और दूसरी बीवी को घर ले आते हैं। इसके बाद मुराद की माँ की दयनीस हालत हो जाती है, जिसे देखकर वह दुखी रहता है। वह अपने पिता से डरता है, जिसके चलते उनकी हर बात सिर झुकाकर मानता है। परिवार के इतर उसकी अपनी एक जिन्दगी है जिसमें सफीना नामक लडक़ी से वह प्रेम करता है। हालांकि इन दोनों की हैसियत में जमीन आसमान का फर्क है, फिर भी दोनों का रोमांस चलता रहता है।

मुराद की जिन्दगी में मशहूर रैपर एमसी शेर के आने से बदलाव आता है। मुराद खुद भी रैपर बनना चाहता है और वह उनसे रैप की ट्रेनिंग लेता है। इस बीच में मुराद को अपने पिता की बीमारी के चलते घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है और वह ड्राइवर बन जाता है। मुराद की रैप की लगन देखकर म्यूजिक प्रोग्रामर स्काई मुराद और एमसी शेर को गाने का प्रस्ताव देती है। बस यहीं से मुराद की जिन्दगी बदल जाती है। लेकिन मुुराद के पिता रैप की खिलाफत करते हैं। अपने पेशन और जिन्दगी की कशमकश के बीच किस तरह से मुराद की जिन्दगी करवट लेती है, कैसे वह अपना रैपर बनने का सपना पूरा करता है यही फिल्म का मूल कथानक है।

गीत-संगीत

फिल्म ने रणवीर सिंह (Ranveer Singh) की एक और काबलियत को उजागर किया है और वह है उनका रैपर होना। रणवीर सिंह ने अपनी आवाज में फिल्म के तीन रैप गाये हैं। हालांकि फिल्म में लगभग 15 से ज्यादा गीत हैं लेकिन तीन रैप जिनको रणवीर सिंह (Ranveer Singh) ने अपनी आवाज दी है, वे युवा वर्ग के दिलो दिमाग में रच बस गए हैं। विशेष रूप से ‘अपना टाइम आएगा’ और ‘हिन्दुस्तान को मिलवा दो असली हिप हॉप से’ ऐेसे हैं जो गहरा असर छोड़ते हैं।

कमजोर कथानक, असरकारक नहीं निर्देशन

जोया अख्तर ने जो कहानी चुनी है वह कमजोर है। इस कहानी में वैसी कोई बात नहीं है जिस पर असरकारक फिल्म का निर्माण किया जा सके। साथ ही उनका निर्देशन भी कुछ ढीला रहा है। वे रणवीर सिंह (Ranveer Singh) के किरदार को उभारने में पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाई हैं। रणवीर सिंह के संघर्ष, जुनून को और भी अच्छे तरीके से दिखाया जा सकता था, उसने जो सपना देखा, उसके लिए कहानी में दर्द और जुनूनियत की आवश्यकता थी, लेकिन कहानी में इसका अभाव साफ नजर आता है। दर्शकों के बीच इस फिल्म की पैठ बनती है सिर्फ कलाकारों के बेहतरीन अभिनय और शानदार रैप के कारण। फिल्म में मनोरंजन की कमी और हिट फिल्म के मसालों का अभाव है। इसके अतिरिक्त फिल्म की लम्बाई ज्यादा है। मध्यान्तर तक फिल्म बोर करती है, क्योंकि इतना लम्बा वक्त जोया ने किरदारों की भूमिका बांधने में ही खत्म कर दिया है। मध्यान्तर के बाद फिल्म गति पकड़ती है, लेकिन अचानक से बीच में कहानी फिर धीमी हो जाती है। इसके चलते दर्शक फिल्म के साथ बंधा नहीं रह पाता है। सबसे ज्यादा इसका अन्त निराशाजनक है। सितारों का अभिनय दर्शकों को शुरूआती दो-तीन दिन तो जरूर आकर्षित करेगा लेकिन आगे का सफर इसके लिए मुश्किलों भरा होगा। फिल्म को चुस्त सम्पादन की जरूरत थी, जिसमें भी जोया असफल रही हैं।