अमिताभ बच्चन विशेष : ‘शराबी’ गीत के फिल्मांकन के दौरान अमिताभ हुए घायल, ‘इंकलाब’ में बदली पटकथा

निर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा ने अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के साथ ‘जंजीर’ के बाद कई फिल्मों का निर्माण किया और बॉक्स ऑफिस पर सफलता का क्रम जारी रखा। अमिताभ के करियर की बेहतरीन फिल्मों में ‘शराबी’ का जिक्र जरूर होता है। हालांकि आलोचकों ने इस फिल्म के गीत ‘जहाँ चार यार मिल जाए वहीं रात हो गुलजार’ के लिए खासी आलोचना की थी। यह भी अमिताभ के करियर की ब्लॉकबस्टर फिल्म थी। इस फिल्म के संवादों और गीतों ने अपने समय खासी लोकप्रियता प्राप्त की। फिल्म का एक संवाद उन दिनों हर युवा की जुबान पर था। संवाद था—‘इतनी भी मय नहीं मयखाने में, जितनी छोड़ दिया करते थे हम पैमाने में’।

इस फिल्म में प्रकाश मेहरा ने अमिताभ बच्चन और जयाप्रदा पर ‘मुझे नवलखा मंगा दे रे ओ सैंया दीवाने’ फिल्माया। गीत के शुरू में जया प्रदा अमिताभ से कहती हैं मेरे नृत्य को देखने वाले आप अकेले हैं, दाद कैसे मिलेगी। जवाब में अमिताभ कहते हैं जिस अंदाज में हम आपको दाद देंगे वैसी किसी ने आपको नहीं दी होगी। गीत के अन्त में अमिताभ बच्चन जया प्रदा के नृत्य के साथ अपने हाथों से घूंघरू बजाते हैं जिसे बजाते-बजाते अमिताभ का हाथ घायल हो जाता है। कहते हैं इस दृश्य को फिल्माते हुए वास्तव में अमिताभ ने इतने जोश में आकर घूंघरू बजाये थे कि उनके हाथ घायल हो गया था। प्रकाश मेहरा फिल्म में इस मूल दृश्य को जस का तस ही रखा था।

इंकलाब में बदलना पड़ा था दृश्य

ऐसा ही एक वाक्या अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘इंकलाब’ के दौरान भी हुआ था। कहते हैं जिन दिनों इस फिल्म की शूटिंग चल रही थी, उससे पहले दीपावली का त्यौंहार पड़ा था। इस त्यौंहार पर पटाखे छुड़ाते वक्त अमिताभ बच्चन का हाथ जल गया था, जिसके चलते उन्हें अपने हाथ पर कोहनी तक पट्टी बांधनी पड़ी थी।

फिल्म के कथा-पटकथा लेखक एम.डी. सुन्दर को अमिताभ बच्चन की स्थिति को देखते हुए पटकथा में बदलाव करना पड़ा और उनके हाथ में लगी चोट को उन्होंने हीरों की स्मगलिंग के साथ जोड़ा। दृश्य में बताया जाता है कि अमिताभ अपने हाथ पर बंधी पट्टी को खोलते हैं, जिसके अन्दर से हीरे निकलते हैं। वर्ष 1984 में प्रदर्शित हुई इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर जुबली मनाई थी, लेकिन कमाई के लिहाज से यह औसत फिल्म रही थी। हाँ अपने री-रन में यह फिल्म वितरकों के लिए सोने की खान साबित हुई थी। 90 के दशक के मध्य में इस फिल्म ने कलकत्ता के मैजैस्टिक सिनेमाघर में री रन में 50 दिन से ज्यादा का सफर तय किया था।