किशोर कुमार को क्यों नहीं था बैंक पर भरोसा, आइये जानें

4 अगस्त, 1929 को जन्में किशोर कुमार एक ऐसी शख्शियत थे जो अपने काम के साथ अपने मस्तमौला और हरफनमौला अंदाज के लिए भी जाने गए। जिंदगी को देखने का उनका अलग ही नजरिया था। इनकी सोच और फितरत के किस्से भी काफी मजेदार हैं। परदे पर काम करने के साथ इनको परदे के पीछे अपने नटखट अंदाज के लिए भी जाना जाता हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि किशोर कुमार को बैंक पर भरोसा नहीं था। अब ऐसा क्यों था, आइये हम बताते हैं आपको।

किशोर कुमार सब कुछ बड़े साफ दिल से कहते-करते थे। लेकिन धन के लेन-देन में कुछ ज्यादा ही सावधानी बरतते थे, मसलन- किसी को हजार या पांच सौ का भी चेक दिया तो अपने नौकर को फौरन पास बुलाते। फिर उतनी ही रकम देकर यह कहते हुए उसे बैंक में भेजते- ‘जाओ, यह मेरे अकाउंट में जमा कर आओ।’

एक दिन किसी ने पूछ लिया- ‘दादा, आप ऐसा क्यों करते हैं?’ किशोर दा का जवाब था- ‘माना कि मेरे पड़ोस में नेशनलाइज बैंक है, मगर किसी के ऊपर कभी पूरा भरोसा मत करो। अगर बैंक में कभी आग लग गई तो? चलिए, वह लुट ही गई तो क्या होगा? इसलिए यह मानकर चलो कि जो पैसे आपकी जेब (तिजोरी) में हैं, वास्तव में वही आपके हैं, बाकी सब मिथ्या है।’ अपने इस रवैये पर उन्हें गुमान भी बहुत था और कहते थे, ‘मैं बेवकूफ थोड़े ही हूं।’