पिछले सप्ताह प्रदर्शित हुई ‘मणिकर्णिका: झांसी की रानी’ ने अपने पहले सप्ताह में बॉक्स ऑफिस पर 60 करोड़ से ज्यादा का कारोबार करने में सफलता प्राप्त की है। इस फिल्म को 125 करोड़ के बजट में बनाया गया है। पिछले कुछ दिनों से निर्देशक कृष और अभिनेत्री मिष्ठी ने कंगना रनौत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, जिसमें वे खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं।
कृष का कहना है कि उन्होंने फिल्म को बीच में नहीं छोड़ा अपितु लॉक की गई पटकथा के अनुसार उसे पूरा फिल्मांकित करने के बाद मैंने निर्माताओं को समय पर इसकी पहली कॉपी दे दी थी। बाद में लेखक विजयेन्द्र प्रसाद ने इसमें कुछ और दृश्यों को जोड़ा जो आवश्यक नहीं थे। इसी के चलते मैंने इसकी शूटिंग दोबारा करने से इंकार कर दिया। वहीं मिष्ठी का कहना है कि जब उन्होंने प्रदर्शित होने के बाद फिल्म को देखा तो उन्हें अपने किरदार को देखकर अफसोस हुआ। फिल्म के सम्पादन के वक्त कंगना रनौत ने उनके दृश्यों पर पूरी तरह से कैंची चला दी थी।
‘मणिकर्णिका: झांसी की रानी’ पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ कंगना रनौत की फिल्म है। वह फिल्म के हर फ्रेम में मौजूद है। फिल्म की पटकथा में ऐसा कोई दृश्य नहीं लिखा गया है जिसमें उनकी उपस्थिति या जिक्र न हो। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म को वो सफलता नहीं मिली जिसकी उम्मीद कंगना और इसके निर्माताओं को थी। फिल्म की सफलता में सबसे बड़ी बाधा इसकी गति है। फिल्म की गति को धीमा रखा गया है, जिसके चलते मध्यान्तर से कुछ पूर्व और क्लाइमैक्स से पहले तक दर्शक बोर हो जाता है। इसके अतिरिक्त फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं जिनकी आवश्यकता महसूस नहीं होती है। विशेष रूप से मध्यान्तर पूर्व में कंगना का बस्ती में जाकर लोगों के साथ नाच गाना और गाय के बछड़े को अंग्रेजों के चंगुल से निकालकर लाना ऐसे ही दृश्य हैं। पीरियड ड्रामा फिल्मों की सफलता में सबसे बड़ा हाथ उसकी गति का होता है। दर्शक को कुछ भी सोचने समझने का वक्त नहीं मिलना चाहिए। एस.एस. राजामौली ने अपनी बाहुबली सीरीज में इस बात का विशेष ध्यान रखा था। यदि कृष और कंगना भी दृश्यों को लम्बा न रखते और गति को तेज रखते तो निश्चित रूप से ‘मणिकर्णिका: झांसी की रानी’ भी बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता प्राप्त कर सकती थी।