पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता हैं वट सावित्री पूर्णिमा व्रत, जानें महत्व और पूजन विधि

आज ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि हैं जिसे हर साल वट सावित्री पूर्णिमा व्रत के तौर पर जाना जाता हैं। सुहागन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए इस व्रत का पूजन करती हैं। सावित्री ने यमराज से वट वृक्ष का पूजन और व्रत करके ही अपने पति के प्राण वापस लिए थे। आज इस कड़ी में हम आपको इस व्रत के महत्व और पूजन विधि से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

वट पूर्णिमा का मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 5 जून 2020 को सुबह 03 बजकर 15 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: 6 जून 2020 को सुबह 12 बजकर 41 मिनट तक

वट पूर्णिमा का महत्व

मान्यता है कि वट यानी बरगद इकलौता ऐसा वृक्ष है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। इस वृक्ष की पूजा करने से तीनों देवता प्रसन्न होते हैं और मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा करने वाली महिलाओं का सुहाग हमेशा सुरक्षित रहता है और उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस व्रत से यह भी पता चलता है कि सुहागन स्त्री में कितनी ताकत होती है कि यमराज से अपने पति के प्राण वापस लेने की शक्ति रखती है।

वट पूर्णिमा पूजन विधि

वट पूर्णिमा के उपवास सुहागन महिलाएं ही करती हैं। इस दिन महिलाएं सुबह उठकर नए कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं। इस दिन वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा आराधना करनी होती है। पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं और उसे कपड़े से ढ़क दिया जाता है। साथ ही दूसरी टोकरी में माता सावत्री की प्रतिमा रखें और उसको भी कपड़े से ढ़क दें।

इन दोनों टोकरी को वट वृक्ष के नीचे ले जाएं। इसके बाद वट वृक्ष और देवी सावित्री और सत्यवान की एक साथ पूजा करें। वट वृक्ष पर जल चढ़ा कर कुमकुम और अक्षत अपर्ण करें। इसके बाद लाल सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद वट सावित्री की कथा सुनने के बाद दान दक्षिणा दें। फिर चने-गुड़ का प्रसाद दिया जाता है। विवाहित महिलाएं वट वृक्ष पर सुहाग का सामान भी अर्पित करें। घर के बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लें और मीठा खाकर व्रत खोलें।