7 अक्टूबर से शुरू हो रही शारदीय नवरात्रि, जरूर करें इन दिनों में ये 10 काम

अश्‍विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ होता हैं जो कि इस बार 7 अक्टूबर से शुरू होने जा रही हैं। मातारानी के भक्तों को इन दिनों का लंबे समय से इन्तजार रहता हैं और सभी मातारानी की पूजा करते हुए उनकी सेवा में लगे रहते हैं। नवरात्रि के इन दिनों को बेहद शुभ माना जाता हैं जिसमें की गई माता की भक्ति शुभ फलदायी साबित होती हैं। आज हम आपको इन दिनों में किए जाने वाले कुछ ऐसे उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनसे मातारानी प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं। तो आइये जानते हैं इन उपायों के बारे में।

मूर्ति और कलश स्थापना : माता की मूर्ति लाकर उसे विधि विधान से घर में स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही घर में घट या कलश स्थापना भी की जाती है। साथ ही एक दूसरे कलश में जावरे या जौ उगाए जाते हैं।

माता का जागरण : कई लोग अपने घरों में माता का जागरण रखते हैं। खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल आदि प्रदेशों में किसी एक खास दि रातभर भजन-कीर्तन होते हैं।

व्रत रखना
: पूरे नौ दिन व्रत रखा जाता है। इसमें अधिकतर लोग एक समय ही भोजन करते हैं। प्रतिदिन दुर्गा चालीसा, चंडी पाठ या दुर्ग सप्तशती का पाठ करते हैं।

कन्या भोज
: जब व्रत के समापन पर उद्यापन किया जाता है तब कन्या भोज कराया जाता है।

इनकी होती है पूजा
: इस नवरात्रि में नौ देवियों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है।

नौ भोग और औषधि
: शैलपुत्री कुट्टू और हरड़, ब्रह्मचारिणी दूध-दही और ब्राह्मी, चन्द्रघंटा चौलाई और चन्दुसूर, कूष्मांडा पेठा, स्कंदमाता श्यामक चावल और अलसी, कात्यायनी हरी तरकारी और मोइया, कालरात्रि कालीमिर्च, तुलसी और नागदौन, महागौरी साबूदाना तुलसी, सिद्धिदात्री आंवला और शतावरी।

नौ दिन के प्रसाद : पहले दिन घी, दूसरे दिन शक्कर, तीसरे दिन खीर, चौथे दिन मालपुए, पांचवें दिन केला, छठे दिन शहद, सातवें दिन गुड़, आठवें दिन नारियल और नौवें दिन तिल का नैवेद्य लगाया जाता है।

माता को अर्पित करें ये भोग : खीर, मालपुए, मीठा हलुआ, पूरणपोळी, मीठी बूंदी, घेवर, पंच फल, मिष्ठान, घी, शहद, तिल, काला चना, गुड़, कड़ी, केसर भात, साग, पूड़ी, भजिये, कद्दू या आलू की सब्जी भी बनाकर भोग लगा सकते हैं।

हवन : कई लोगों के यहां सप्तमी, अष्टमी या नवमी के दिन व्रत का समापन होता है तब अंतिम दिन हवन किया जाता है।

विसर्जन : अंतिम दिन के बाद अर्थात नवमी के बाद माता की प्रतिमा और जवारे का विसर्जन किया जाता है।

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। lifeberrys हिंदी इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले विशेषज्ञ से संपर्क जरुर करें।)