हिन्दू धर्म में कलाई पर मौली बांधने के बारे में बताया गया है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले कलाई पर मौली बांधना बताया गया है। यह बेहद ही खास संस्कार है। जिस तरह पूजा के दौरान तिलक लगाना, हवन कुंड में सामग्री डालना आदि अनिवार्य है उसी तरह मौली का होना भी बहुत जरूरी है। मौली को कलावा भी कहा जाता है। यह लाल रंग , केसरी रंग की दोनों प्रकार की होती है। मौली शुभता का परिचायक होती है। मौली को धरण करते ही लोगो के काम बन जाता है। आइये जानते है मौली बांधने के कारण के बारे मे ...
# हिन्दू शास्त्रों में मौलि बांधने का महत्व बताया गया है, जिसके अनुसार मौलि बांधने से त्रिदेवों और तीनों महादेवियों की कृपा प्राप्त होती है
# ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के मस्तक पर जो चन्द्रमा विराजमान हैं, उन्हें चन्द्रमौलि कहते हैं। कलावा यानी मौलि बांधने की परंपरा की शुरुआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि ने की थी।
# बेजान वस्तुओं जैसे कि वाहन, बही-खाता, मेन गेट, चाबी के छल्ले और तिजोरी आदि पर कलावा बांधने के पीछे यह मान्यता है कि इससे उस विशेष वस्तु से हमें लाभ होता है।
# यह धागा काफी खास है, इसका रंग एवं एक-एक धागा हमें शक्ति एवं समृद्धि प्रदान करता है। ना केवल इसे बांधने से बल्कि मौलि से बनी सजावट की वस्तुएं घर में रखने से भी बरक्कत होती है और खुशियां आती हैं।
# शास्त्रों के अनुसार कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि कलाई पर इसे बांधने से जीवन पर आने वाले संकट से रक्षा होती है।