
राधारानी के परम भक्त और आध्यात्मिक गुरु संत प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि भोजन केवल शरीर की भूख मिटाने का जरिया नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना है। जब हम इसे प्रसाद समझकर ग्रहण करते हैं, तब यह शरीर को पोषण, मन को शांति और आत्मा को ऊर्जा प्रदान करता है। चलिए जानते हैं कि खाना खाते समय किन नियमों का पालन करना चाहिए, ताकि हम भोजन को एक पवित्र अनुभव बना सकें।
सात्विक और हल्का भोजन चुनें, तामसिकता से रहें दूरमहाराज जी कहते हैं कि हर किसी को भोजन में सात्विकता का भाव रखना चाहिए। भोजन हल्का हो, सरल हो और ऐसी चीजों से परहेज़ किया जाए जो मन और शरीर को भारी करें, जैसे कि प्याज, लहसुन और तामसिक भोज्य पदार्थ। यदि आप खीर, पूड़ी, दाल, और मौसमी सब्जियों को शामिल करें तो यह न केवल स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, बल्कि मन को भी हल्का और शांत बनाए रखता है।
समय का करें पालन, और माहौल रखिए शांत
प्रेमानंद जी महाराज का कहना है कि रात का खाना शाम 6 बजे तक कर लेना चाहिए। देर रात भारी खाना न सिर्फ पाचन पर असर डालता है, बल्कि नींद और मानसिक स्थिति को भी बिगाड़ सकता है। भोजन करते समय शांति का माहौल, टीवी, मोबाइल और विवादों से दूर रहना आवश्यक है। पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके भोजन करना, वास्तु के अनुसार शुभ और ऊर्जा से भरपूर माना गया है।
भोजन से आत्मिक शांति कैसे मिलेगी? जानिए प्रेमानंद जी के विचारमहाराज जी के अनुसार, जब हम भोजन करते समय ईश्वर का स्मरण करते हैं, और मौन रहकर, सीमित मात्रा में, शांत वातावरण में भोजन करते हैं तो यह केवल शरीर को नहीं, बल्कि आत्मा को भी पोषित करता है। यही नहीं, यह एक तरह की साधना बन जाती है, जिससे हम स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति तीनों प्राप्त कर सकते हैं।