जाने सबसे पहले किसने उड़ाई थी मकर संक्रांति के दिन पतंग

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है , इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इसके साथ ही मकर संक्रान्ति के दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। मकर संक्रांति पर बच्‍चे हो या बड़े हर किसी को पतंग उड़ाने का जुनून सवार हो जाता है। आसमान में हर तरफ रंग-बिरंगी पतंगें छा जाती हैं। लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा है कि यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि इसकी शुरुआत भगवान राम ने की थी।

तमिल की तन्‍दनान रामायण में एक कथानक मिलता है। जिसमें इस बात का वर्णन किया गया है कि भगवान श्रीराम ने मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा शुरू की थी। कहा जाता है कि जो पतंग श्री रामजी ने उड़ाई वह इंद्रलोक में चली गई थी। जब श्रीराम जी की पतंग इंद्रलोक में पहुंची तो इंद्र के पुत्र जयंत की पत्‍नी को वह काफी पसंद आई। उन्‍होंने उसे अपने पास ही रख लिया। उन्‍होंने सोचा कि जिसकी पतंग है वह तो इसे लेने आएंगे ही। उधर राम जी ने हनुमान को पतंग का पता लगाने भेजा।

जब श्री हनुमान ने जयंत की पत्‍नी से अपने प्रभु की पतंग वापस करने को कहा तो उन्‍होंने श्रीराम के दर्शनों की इच्‍छा जाहिर की। उन्‍होंने कहा कि दर्शनों के बाद ही वह पतंग वापस करेंगी। तब हनुमान जी अपने प्रभु के पास पहुंचे और पूरा प्रसंग सुनाया। इस पर श्रीराम ने चित्रकूट में दर्शन देने की बात कह हनुमान जी को पुन: भेजा। जयंत की पत्‍नी ने पवनपुत्र से पूरा वृतांत सुनने के बाद पतंग वापस कर दी।

मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का रिवाज केवल धार्मिक महत्‍व ही नहीं रखता। बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्‍व भी है। देखा जाए तो पतंग उड़ाने से कई व्‍यायाम हो जाते हैं। चूंकि यह पर्व सर्दियों में पड़ता है तो इससे शरीर को तो ऊर्जा मिलती ही है साथ ही स्क्नि संबंधी भी कई परेशानियों से राहत मिलती है।