31 मार्च को बनाया जायेगा रांधा पुआ और 1 अप्रैल को होगी शीतलाष्टमी, इन मंत्रो का करें जाप

होली के बाद सातवें और आठवें दिन देवी शीतला माता की पूजा की परंपरा है। इन्हें शीतला सप्तमी या शीतलाष्टमी कहा जाता है। शीतला माता का जिक्र स्कंद पुराण में मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि इनकी पूजा और व्रत करने से चेचक के साथ ही अन्य तरह की बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार चैत्र मास में शीतला माता के लिए शीतला सप्तमी 1 अप्रैल और अष्टमी 2 अप्रैल का व्रत-उपवास किया जाता है। इस व्रत में ठंडा खाना खाने की परंपरा है। जो लोग ये व्रत करते हैं, वे एक दिन पहले बनाया हुआ खाना ही खाते हैं। 31 मार्च को रांधा पुआ होगा और 1 अप्रैल को शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन खाया जायेगा। कहीं पर सप्तमी के दिन और कहीं पर अष्टमी के दिन ठंडा भोजन किया जाता है। 2 अप्रैल को मंगलवार होने की वजह से 1 अप्रैल को शीतला सप्तमी के दिन भोग लगाया जाएगा और ठंडा भोजन किया जाएगा। दरअसल, ये समय शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है। इस दौरान मौसमी बीमारियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। शीतला सप्तमी और अष्टमी पर ठंडा खाना खाने से हमें मौसमी बीमारियों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है। ऐसी मान्यता है।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि 01 अप्रैल 2024 को रात्रि 09:09 बजे शुरू होगी, जो 02 अप्रैल 2024 को रात्रि 08:08 बजे तक रहेगी। 2 अप्रैल को मंगलवार होने की वजह से 1 अप्रैल को शीतला सप्तमी के दिन भोग लगाया जाएगा और ठंडा भोजन किया जाएगा। ऐसे में 1 अप्रैल को लोकपर्व बास्योड़ा मनाया जाएगा। इस दिन शीतला माता की पूजा-अर्चना करने के साथ महिलाएं व्रत भी रखेंगी। इसके एक दिन पहले 1 अप्रैल को रांधा पुआ होगा, जिसमें घर-घर महिलाएं शीतलाष्टमी (बास्योड़ा) के लिए भोजन पकवान बनाएगी। शीतलाष्टमी के दिन सुबह शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाएगा। इसके बाद लोग ठंडे पकवान ही खाएंगे। बास्योड़ा पर शीलता माता को ठंडा भाेजन अर्पित कर चेचक आदि बीमारियों से परिवार को बचाने की प्रार्थना की जाएगी।

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि बच्चों को बीमारियों से दूर रखने के लिए और उनकी खुशहाली के लिए इस त्योहार को मनाने की परंपरा बरसों से चली आ रही है। कुछ स्थानों पर शीतला अष्टमी को बासौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन माता शीतला की बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है और स्वयं भी प्रसाद के रूप में बासी भोजन ही करना होता है। नाम के अनुसार ही शीतला माता को शीतल चीजें पसंद हैं। मां शीतला का उल्लेख सर्वप्रथम स्कन्दपुराण में मिलता है। इनका स्वरूप अत्यंत शीतल है और कष्ट-रोग हरने वाली हैं। गधा इनकी सवारी है और हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते हैं। मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार कुछ जगह शीतला माता की पूजा चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की सप्तमी को और कुछ जगह अष्टमी पर होती है। इस बार ये तिथियां 1और 2 अप्रैल को रहेंगी। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता शिव होते हैं। दोनों ही उग्र देव होने से इन दोनों तिथियों में शीतला माता की पूजा की जा सकती है। निर्णय सिंधु ग्रंथ के मुताबिक इस व्रत में सूर्योदय व्यापिनी तिथि ली जाती है। इसलिए सप्तमी की पूजा और व्रत सोमवार को किया जाना चाहिए। वहीं, शीतलाष्टमी मंगलवार को मनाई जाएगी।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार स्कन्द पुराण में माता शीतला की अर्चना का स्तोत्र 'शीतलाष्टक' के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि- इस स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शंकर ने की थी। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है।

मंत्र

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

अगर आप अपने घर की सुख-समृद्धि बनाये रखना चाहते हैं तो आपको स्नान आदि के बाद शीतला माता के इस मंत्र का 51 बार जप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः। आज के दिन ऐसा करने से आपके घर की सुख-समृद्धि बनी रहेगी। साथ ही आपके परिवार के सदस्यों की सेहत भी अच्छी रहेगी। ज्योतिषाचार्य के अनुसार अगर आप भय और रोग आदि से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको देवी शीतला के इस मंत्र का 21 बार जप करना चाहिए।

मंत्र

वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्वरोग भयापहम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत्।।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार अगर आप अच्छे स्वास्थ्य की कामना रखते हैं। साथ ही लंबी आयु का वरदान पाना चाहते हैं, तो आपको शीतलाष्टक स्त्रोत में दी गई इन पंक्तियों का जाप करना चाहिए। पंक्तियां इस प्रकार हैं-

मृणाल तन्तु सदृशीं नाभि हृन्मध्य संस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्त येद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते।।

भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि ऐसी प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती है, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं। मां शीतला का पर्व किसी न किसी रूप में देश के हर कोने में मनाया जाता है।

ठंडा खाने की परंपरा

ज्योतिषाचार्य के अनुसार शीतला माता का ही व्रत ऐसा है जिसमें शीतल यानी ठंडा भोजन करते हैं। इस व्रत पर एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन करने की परंपरा है। इसलिए इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। माना जाता है कि ऋतुओं के बदलने पर खान-पान में बदलाव करना चाहिए है। इसलिए ठंडा खाना खाने की परंपरा बनाई गई है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडा खाने से संक्रमण और अन्य बीमारियां नहीं होती। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान व मध्य प्रदेश के कुछ समुदाय के लोग इस त्योहार को बासौड़ा कहते हैं। जो कि बासी भोजन के नाम से लिया गया है। इस त्योहार को मनाने के लिए लोग सप्तमी की रात को बासी भोजन तैयार कर लेते हैं और अगले दिन देवी को भोग लगाने के बाद ही स्वयं ग्रहण करते हैं। कहीं पर हलवा पूरी का भोग तैयार किया जाता है तो कुछ स्थानों पर गुलगुले बनाए जाते हैं। कुछ स्थानों पर गन्ने के रस की बनी खीर का भोग भी शीतला माता को लगाया जाता है। इस खीर को भी सप्तमी की रात को ही बना लिया जाता है।

बीमारियों से बचने के लिए व्रत


माना जाता है कि देवी शीतला चेचक और खसरा जैसी बीमारियों को नियंत्रित करती हैं और लोग उन बीमारियों को दूर करने के लिए उनकी पूजा करते हैं।

सुख-समृद्धि के लिए व्रत

ज्योतिषाचार्य के अनुसार हिन्दू धर्म के अनुसार सप्तमी और अष्टमी तिथि पर महिलाएं अपने परिवार और बच्चों की सलामती के लिए और घर में सुख, शांति के लिए बासौड़ा बनाकर माता शीतला को पूजती है। माता शीतला को बासौड़ा में कढ़ी-चावल, चने की दाल, हलवा, बिना नमक की पूड़ी चढ़ावे के एक दिन पहले ही रात में बना लेते हैं। अगले दिन ये बासी प्रसाद देवी को चढ़ाया जाता है। पूजा के बाद महिलाएं अपने परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करती हैं।

पौराणिक कथा

ज्योतिषाचार्य के अनुसार एक बार की बात है, प्रताप नगर में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे और पूजा के दौरान गांव वालों ने गर्म नैवेद्य माता शीतला को चढ़ाया। जिससे देवी का मुंह जल गया। जिससे गांव में आग लग गई। लेकिन एक बुढ़िया का घर बचा गया था। गांव वालों ने बुढ़िया से घर न जलने की वजह पूछी तो बताया कि उसने माता शीतला को ठंडा प्रसाद खिलाया था और कहा कि मैंने रात को ही प्रसाद बनाकर ठंडा बासी प्रसाद माता को खिलाया। जिससे देवी ने प्रसन्न होकर मेरे घर को जलने से बचा लिया। बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने अगले पक्ष में सप्तमी/अष्टमी के दिन उन्हें बासी प्रसाद खिलाकर माता शीतला का बसौड़ा पूजन किया।