आज इस विधि से करें जन्माष्टमी पर पूजा, पूरी होगी हर मनोकामना

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को दुनियाभर में भगवान कृष्ण का जन्म धूमधाम से मनाया जाता है। माना जाता है कि रात 12 बजे भगवान कृष्ण जन्म हुआ था, जो भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। भगवान विष्णु ने यह जन्म धर्म की स्थापना के लिए लिया था। इस बार जन्माष्टमी (Janmashtami) कुछ स्थानों पर 11 अगस्त को मना चुके हैं और मथुरा-वृंदावन समेत ज्यादातर मंदिरों में 12 अगस्त यानी आज मनाई जा रही है। इस दिन भगवान पूजन करते हैं और कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं। कहीं पालकी सजाई जाती है तो कहीं झांकियां निकाली जाती है। अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समय के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो दिनों तक मनाया जाता है।

इन दो दिनों में भक्त पूरी श्रद्धा से कृष्ण भगवान की पूजा करते हैं। मान्यता है कि आज के दिन भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए जानते हैं कि इस विशेष दिन कान्हा को किस तरह प्रसन्न किया जा सकता है।

- प्रातःकाल सूर्य को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इसके बाद हाथ में जल, पुष्प और सुगंध लेकर संकल्प करें।

- मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए प्रसूति-गृह का निर्माण करें। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

- विधि-विधान से पूजन करें और प्रभु कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करें।

- श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भक्तों की हर मनोकामना पूरी की जा सकती है।

- कमजोर चंद्रमा वाले लोग इस दिन विशेष पूजा करके लाभ की प्राप्त कर सकते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूजा करने से सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति भी हो सकती है। इस दिन कान्हा के बाल-गोपाल स्वरूप की पूजा की जाती है।

श्रीकृष्ण की आरती

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवण में कुण्डल झलकाला,

नंद के आनंद नंदलाला ।

गगन सम अंग कांति काली,

राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक,

कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै ।

बजे मुरचंग,

मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,

सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस,

जटा के बीच,

हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद,

चांदनी चंद,

कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥