करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला उपवास करती हैं और रात को चांद के दर्शन करने के बाद व्रत खोलती हैं। उत्तर भारत में कई जगहों पर करवा चौथ के दिन छननी से पति का चेहरा देखने की परंपरा है। क्या आप जानते हैं कि चंद्र दर्शन के बाद सुहागिनें ऐसा क्यों करती हैं। करवा चौथ के व्रत में इस छननी का बड़ा विशेष महत्व बताया गया है। करवा चौथ के दिन चंद्र दर्शन के समय सुहागिनें एक छननी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। इस छननी में दीपक भी रखा जाता है। इस छननी से पति का चेहरा देखने के बाद वे उनके हाथ से जल ग्रहण करती हैं और व्रत का पारण करती हैं। आइए आज आपको इसके पीछे की कहानी बताते हैं।
करवा चौथ पर छलनी के इस्तेमाल की एक पौराणिक कथा है। पौराणिक कथा के अनुसार, पतिव्रता वीरवती के सात भाई थे। जब वीरवती का विवाह हुआ तो उसने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। चूंकि उसने व्रत निर्जला रखा था, इसलिए उसकी तबियत बिगड़ने लगी। भाइयों से उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी।
एक भाई से यह बिल्कुल बर्दाश्त ना हुआ और वो पेड़ पर एक छननी में दीपक रखकर बैठ गया। जब वीरवती ने छननी में जलते हुए दीपक को देखा तो वो उसे चंद्रमा समझ बैठी और व्रत खोल लिया। वीरवती जब खाने का पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तब उसको छींक आ जाती है। दूसरे टुकड़े पर बाल बीच में आ जाता है और तीसरा खाने का टुकड़ा जब मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मौत की खबर आज जाती है। वीरवती की भाभी उसको सच्चाई से अवगत कराती हैं कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। वीरवती को जब पता चलता है तो सच्चे मन से अपनी गलती स्वीकार करती है और अपने पति की फिर जीवित होने की कामना करती है। वीरवती पूरे साल चतुर्थी तिथि का व्रत रखती है। फिर जब करवा चौथ आया तो उसने विधि विधान से पूजा करके व्रत रखा और असली चांद को अर्घ्य देकर अपना व्रत तोड़ा।इसके बाद वह छननी से सबसे पहले चंद्रमा और उसके बाद अपने पति को देखती है। करवा चौथ माता उसकी यह मनोकामना पूरी करती हैं, इससे उसका पति फिर से वापस जीवित हो जाता है। मान्यता है कि पतिव्रता स्त्री से कोई छल न कर पाए, इसलिए भी छननी से चांद को देखा जाता है। छननी के बारीक छेदों से चांद को देखने की परंपरा है ताकि महिलाओं का किसी भी प्रकार से व्रत न भंग होने पाए। कहते हैं कि तभी से करवा चौथ के दिन पति को छननी से देखने की परंपरा चली आ रही है।