किस दिन कब और कैसे करें पितरों को खुश

पितरों का श्राद्ध मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए लेकिन अगर मृत्यु तिथि ना मालूम हो तो आश्विन अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग होता है, इस दिन को पितरों के लिए शुभ मानकर पितरों को श्राद्ध अर्पित करना चाहिए।

गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पिण्ड दान या तर्पण हमेशा एक सुयोग्य पंडित द्वारा ही कराना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों को दान अवश्य करना चाहिए। साथ ही गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना चाहिए। कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर हमारे घर आते हैं।

वर्ष 2017 में पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथियां निम्न हैं:

तिथि दिन श्राद्ध तिथियाँ

05 सितंबर मंगलवार पूर्णिमा श्राद्ध
06 सितंबर बुधवार प्रति पदा तिथि का श्राद्ध
07 सितंबर गुरुवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध
08 सितंबर शुक्रवार तृतीया – चतुर्थी तिथि का श्राद्ध (एकसाथ)
09 सितंबर शनिवार पंचमी तिथि का श्राद्ध
10 सितंबर रविवार षष्ठी तिथि का श्राद्ध
11 सितंबर सोमवार सप्तमी तिथि का श्राद्ध
12 सितंबर मंगलवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध
13 सितंबर बुधवार नवमी तिथि का श्राद्ध
14 सितंबर गुरुवार दशमी तिथि का श्राद्ध
15 सितंबर शुक्रवार एकादशी तिथि का श्राद्ध
16 सितंबर शनिवार द्वादशी तिथि का श्राद्ध
17 सितंबर रविवार त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध
18 सितंबर सोमवार चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध
19 सितंबर मंगलवार अमावस्या व सर्वपितृ श्राद्ध (सभी के लिए)

दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना चाहिए। यदि किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। जिन पितरों के म्रत्यु की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध सर्व पितृ श्राद्ध तिथि यानि अमावस्या के दिन किया जाता है।

पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है। जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है।