धर्म शास्त्र की दृष्टि से फाल्गुन और चैत्र मास में भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। जिस जातक का सूर्य प्रबल न हो तो उसे शारीरिक और मानसिक बीमारियां घेरे रहती हैं, उन्हें सूर्य की उपासना अवश्य करनी चाहिए। विशेषकर महिलाओं के लिए कार्तिक मास के रविवार और सोमवार को सूर्योपासना से घर में समृद्धि व गर्भवती महिलाओं को गुणी पुत्र की प्राप्ति होती है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इन दिवसों में शमीवृक्ष (खेजड़ी) के नीचे प्रात: काल सूर्योपासना करने या सूर्योदय की ओर मुख कर इस मंत्र का 101 बार जाप करें -
नम: उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम:। नम: पद्मप्रबोधाय प्रचंडाय नमोस्तु ते ।। ओम आदित्याय नम:।
आत्मबल, बुद्धि, दसों इंद्रियों में सौम्य व शिष्ट भाव, काम, क्रोधादि शमन व मानसिक पीड़ा के लिए इन मासों के प्रति रविवार को खेजड़ी के नीचे सूर्याभि मुख में बैठकर इस मंत्र का 21 बार वाचन करें साथ ही इस पेड़ के नीचे की मिट्टी को लाकर घर में फेंके और यह मंत्र जपें -
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:। ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ।। ओम सूर्याय नम:।
कार्तिक मास में जिन महिलाओं को संतान सुख न हो, ऐसी महिलाओं को आंवले के पेड़ के नीचे अथर्ववेद के इस मंत्र का 101 बार जाप व सूर्य देव को जल सिंचन करने से संतान प्राप्ति सुख संभव है
परिहस्त विधारय योनिम गर्भाय धातवे। ओम भास्कराय नम:।
नीले रंग के अपराजिता (विष्णुकान्ता) नामक पौधे के नीचे इस मंत्र का जाप करने से घर के मुकदमेबाजी व न्यायालय में विजय, घर में समृद्धि व स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम), चर्म रोग व श्वसन सम्बंधी रोगों के निदान के लिए इस पौधे के न होने की दशा में पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर सूर्य को जल सींचकर यह मंत्र जपें-
ओम विश्वानिदेव सवितु: दुरितानि परांसुव: यद् भद्रं तन्नासुव:। सूर्य कृणोतु भेषजं चंद्रमा वोक्पोच्छतु ।। ओम सूर्याय नम:।
दीर्घायु सम्बंधी बीमारियों के लिए कार्तिक मास के प्रति रविवार बड़, ढाक, अशोक या सूर्यमुखी पौधे के नीचे आदित्य ह्रदृय स्तोत्रम् का पाठ करें । उत सूर्यो दिव एति पुरो रक्षांसि निजूर्वन् ।
ओम भानवे नम:।
कुशाग्र बुद्धि, इंटरव्यू में सफलता व शिक्षा से जुड़े पक्षों और वायु सम्बंधी रोगों के निवारण के लिए अथर्ववेद के इस मंत्र का पीपल के पेड़ के नीचे इस मंत्र का जाप करें -
यं जीवमश्नवामहै न स रिष्याति पुरुष:। त्वं सूर्यस्य रश्मिभिस्त्वं नोअसियज्ञिया।। ओम सूर्याय नम:।
डॉ. शंकर लाल शास्त्री