शंख संहिता के अनुसार शंख को तीन भागों में विभक्त किया गया है। जैसे वामावर्ती, दक्षिणावर्ती और मध्यावर्ती।
वामावर्ती बजने वाले शंख होते हैं उनका मुंह बाईं ओर होता है तथा ये बाईं ओर से खुलते हैं।
दक्षिणमुखी एक विशेष जाति का दुर्लभ अद्भुत् चमत्कारी शंख दाहिने तरफ खुलने की वजह से दक्षिणावर्ती शंख कहलाते हैं।
दक्षिणमुखी शंख सहज रूप से सुलभ नहीं हो पाते हैं। आकाश में नक्षत्र मंडल में विशेष शुभ नक्षत्र के प्रभाव से दक्षिणावर्ती शंख की उत्पत्ति समुद्र के गर्भ से होती है। यह शंख अपने चमत्कारी प्रभाव के कारण दुर्लभ व मूल्यवान भी होता है।
प्रत्येक विशेष पूजा में शंख द्वारा अभिषेक का महत्व है। प्रत्येक पूजा में इसे पवित्र माना गया है। लक्ष्मी से संबंधित जितने भी प्रयोग हैं वे दक्षिणावर्ती शंख प्रयोग की तुलना में कुछ भी नहीं हैं। शुद्ध श्रेष्ठ असली प्रामाणिक दक्षिणवर्ती शंख को घर में स्थापित करना चाहिए।
यह शंख चंद्रमा और सूर्य के समान देव स्वरूप है इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में गंगा का निवास है। शंख में सारे तीर्थ विष्णु आज्ञा से निवास करते हैं और यह कुबेर स्वरूप है। अतः इसकी तो पूजा अवश्य ही करनी चाहिए, इसके दर्शन मात्र से सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।
यदि आपको निर्दोष शंख मिल जाए तो उसे किसी शुभ मुहूर्त में गंगाजल, गोघृत, कच्चा दूध, मधु, गुड़ आदि से अभिषेक करके अपने पूजा स्थल में लाल कपड़े के आसन पर स्थापित कर लीजिये इससे लक्ष्मी का चिर स्थाई वास बना रहेगा।