कोटा: सरकारी अस्पताल में 8 घंटे में 9 नवजात की मौत, पिछले साल 35 दिन में 107 बच्चों की गई थी जान

By: Pinki Thu, 10 Dec 2020 9:18:54

कोटा: सरकारी अस्पताल में 8 घंटे में 9 नवजात की मौत, पिछले साल 35 दिन में 107 बच्चों की गई थी जान

कोटा के मातृ एवं शिशु चिकित्सालय जेके लोन में करीब 8 घंटे के भीतर 9 नवजातों की मौत हो गई। आज गुरुवार तड़के 3 बजे पहले बच्चे की जान गई और सुबह करीब 10:30 बजे तक 9 बच्चों की मौत हो चुकी थी। इन सभी बच्चों की उम्र एक से सात दिन के बीच थी। बच्चों की मौत के बाद कलेक्टर अस्पताल पहुंचे। उन्होंने तुरंत 5 अतिरिक्त डॉक्टर और 10 नर्सिंग स्टाफ तैनात करने के आदेश दिए। उधर, राज्य के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है। एक्सपर्ट कमेटी 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपेगी।

आपको बता दे, ऐसा पहली बार नहीं है कि जब इस अस्पताल में मासूमों की इस तरह से मौत हुई हो। पिछले साल इसी अस्पताल में नवंबर-दिसंबर में 35 दिन के भीतर 107 बच्चों की जान गई थी। इसकी वजह जानने के लिए दिल्ली से टीम आई थी। राज्य के मंत्री और अधिकारी भी पहुंचे। पीडियाट्रिक विभाग के अध्यक्ष डॉ अमृत लाल बैरवा को हटाया गया था। उनकी जगह जयपुर के डॉ जगदीश को विभागाध्यक्ष बनाया था।

भास्कर की खबर के अनुसार अस्पताल अधीक्षक डॉ एससी दुलारा ने कहा- 9 नवजात में से 3 जब अस्पताल पहुंचे तो उनकी जान जा चुकी थी। 3 को जन्मजात बीमारी थी। इनमें एक का सिर ही नहीं था और दूसरे के सिर में पानी भर गया था। तीसरे में शुगर की कमी थी। जो 2 बच्चे बूंदी से रेफर होकर आए हैं, उन्हें इन्फेक्शन था। डॉ दुलारा ने कहा कि अस्पताल में हर महीने करीब 60 से 100 बच्चों की मौत होती है। रोज के लिहाज से ये आंकड़ा 2 से 5 के बीच रहता है। हालांकि, एक दिन में 9 बच्चों की मौत सामान्य नहीं है।

अस्पताल सूत्रों के मुताबिक, यहां ठंड में बच्चों के लिए जरूरी मेडिकल उपकरणों की कमी है। जो हैं, उनमें भी कई खराब पड़े हैं। अभी यहां 98 बच्चे भर्ती हैं। मौसम के लिहाज से वाॅर्मर की डिमांड बढ़ गई है। इसके बावजूद 11 वॉर्मर खराब पड़े हैं।

इस बार भी पिछले साल जैसे हालात हैं। कोटा दक्षिण से विधायक संदीप शर्मा ने राज्य सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अस्पताल में डॉक्टरों की जरूरत है। पिछली बार की घटना के बाद यहां नए चिकित्सक तैनात किए गए थे। बाद में उन सभी का तबादला कर दिया गया। एक प्रोफेसर और एक एसोसिएट प्रोफेसर के भरोसे अस्पताल चल रहा है। 230 बच्चों की जान का जिम्मा एक प्रोफेसर व एक एसोसिएट प्रोफेसर नहीं उठा सकते हैं।

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