भारत के 'उच्च वर्ग का एक तबका सड़े आलू जैसा, 1 रुपये का भी धर्मार्थ कार्य नहीं करता' : सत्यपाल मलिक
By: Priyanka Maheshwari Thu, 20 Dec 2018 09:34:47
जम्मू-कश्मीर में छह महीने का राज्यपाल शासन पूरा होने के बाद बुधवार मध्यरात्रि से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने एक अधिघोषणा पर हस्ताक्षर कर वहां केन्द्रीय शासन का मार्ग प्रशस्त कर दिया। उल्लेखनीय है कि राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वार राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश संबंधित रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी थी। इस रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को फैसला लिया। इस घोषणा के बाद राज्य विधानसभा की सभी शक्तियां संसद के अधीन हो जाएंगी। चूंकि राज्य का एक अलग संविधान है, ऐसे मामलों में जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत छह महीने तक राज्यपाल शासन अनिवार्य होती हैं, इस अवधि के दौरान सभी विधायी शक्तियां राज्यपाल के अधिन होती हैं।
वही जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सैनिक वेल्फेयर सोसाइटी के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश के धनाढ्य वर्ग के एक तबके को 'सड़े आलू' जैसा बताया। उन्होंने कहा ‘‘इस देश में जो धनाढ्य हैं उनका एक बड़ा वर्ग...कश्मीर में नेता और नौकरशाह सभी अमीर हैं... उनमें समाज के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं है। वे एक रुपये का भी धर्मार्थ कार्य नहीं करते।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इनमें से उच्च वर्ग में कुछ हैं। आप इसे बुरे तरीके से नहीं लें, मैं उन्हें इंसान नहीं ‘सड़े आलू’ के समान मानता हूं।’’ मलिक अनेक बार कश्मीर के अमीर नेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ मुखर हो चुके हैं।
देश के सबसे अमीर व्यक्ति द्वारा बेटी की शादी में 700 करोड़ रुपए खर्च किए जाने के सवाल पर राज्यपाल ने कहा कि वह धर्मार्थ कार्य नहीं करता लेकिन देश के धन में इजाफा करता है।’ हालांकि इस दौरान उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया।
मलिक के कहा, ‘यूरोप में और अन्य देशों में वे धर्मार्थ कार्य करते हैं। माइक्रोसॉफ्ट के मालिक अपनी संपत्ति का 99 प्रतिशत धर्मार्थ कार्यों के लिए देते हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि वह धर्मार्थ कार्य नहीं करते लेकिन देश की संपत्ति में इजाफा करते हैं।’ उन्होंने कहा कि 700 करोड़ रुपए से राज्य में 700 बड़े स्कूल बनाए जा सकते थे और शहीदों की 7000 विधवाएं अपने बच्चों का लालन पालन कर सकती थीं।
राज्यपाल ने कहा, ‘लेकिन वे धर्मार्थ कार्य नहीं करेंगें। समाज के इस तबके (उच्च वर्ग) में जो संवेदनशीलता होनी चाहिए वह इनमें नहीं हैं।’ उन्होंने कहा कि समाज उच्च वर्ग से नहीं बनता बल्कि किसानों ,कर्मचारियों, उद्योंगों में काम करने वाले लोगों और सशस्त्र बलों में काम करने वाले लोगों से बनता है। उन्होंने कहा, ‘चलें हम अपने सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ाएं, उनकी मदद करें और उन्हें याद रखें।’
राज्य में चुनाव होना चाहिए : वहीं, जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के आदेश पर फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य में चुनाव होना चाहिए। मीडिया से बात करते हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, 'मुझे लगता है कि राज्य में गवर्नर और राष्ट्रपति का शासन खत्म होना चाहिए। यहां चुनाव होना चाहिए, ताकि राज्य के लोग अपना प्रतिनिधि चुन सकें, जो काम कर सकते हैं।' जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के छह महीने मंगलवार को पूरे हो गए हैं।
राज्य संविधान के मुताबिक, राज्यपाल शासन छह महीने से ज्यादा समय तक लागू नहीं रखा जा सकता। अगर इस अवधि के बाद भी सरकार का गठन नहीं होने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। ऐसे हालात में राज्यपाल, राष्ट्रपति और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में सरकार के गठन तक राज्य का संचालन करेंगे। बता दें कि महबूबा मुफ्ती नीत गठबंधन सरकार से जून में बीजेपी की समर्थन वापसी के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक संकट बना हुआ है।
गौरतलब है कि कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस के समर्थन के आधार पर पीडीपी ने जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने का दावा पेश किया था, जिसके बाद राज्यपाल ने 21 नवंबर को 87 सदस्यीय विधानसभा भंग कर दी थी।
तत्कालीन विधानसभा में दो सदस्यों वाली सज्जाद लोन की पीपुल्स कान्फ्रेंस ने भी तब भाजपा के 25 सदस्यों और अन्य 18 सदस्यों की मदद से सरकार बनाने का दावा पेश किया था। बहरहाल राज्यपाल ने यह कहते हुए विधानसभा भंग कर दी कि इससे विधायकों की खरीदो फरोख्त होगी और स्थिर सरकार नहीं बन पाएगी। अगर राज्य में चुनावों की घोषणा नहीं की गई तो वहां राष्ट्रपति शासन अगले छह महीने तक चलेगा।