एक गाँव ऐसा जहां हर साल लगता है 'भूतों का मेला'

By: Ankur Sat, 06 Jan 2018 5:12:43

एक गाँव ऐसा जहां हर साल लगता है 'भूतों का मेला'

हमारे भारत को त्योंहारो और मेलों का देश कहा जाता हैं। भारत में कई तरह के मेलों का आयोजन होता रहता हैं। आपने कई मेलों के बारे में सुना होगा लेकिन शायद ही 'भूतों के मेले' के बारे में सुना होगा। जी हाँ, एक गाँव ऐसा है जहां हर साल मेला लगता है और उसे 'भूतों का मेला' कहा जाता हैं। बैतूल जिले से करीब 42 किलोमीटर दूर चिचौली तहसील के गांव मलाजपुर में हर साल मकर मकर संक्रांति की पहली पूर्णिमा से 'भूतों का मेला' शुरू होता है। अब इसे भूतों का मेला क्यों कहा जाता है। तो आइये जानते हैं इसके पीछे की कहानी के बारे में।

ऐसी मान्यता है कि 1770 में गुरु साहब बाबा नाम के एक संत ने यहां जीवित समाधि ली थी। कहा जाता है कि संत चमत्कारी थे और भूत-प्रेत को वश में कर लेते थे। बाबा की याद में हर साल यहाँ मेला लगता है। भूत-प्रेत बाधा निवारण के लिए गुरु साहब बाबा के मंदिर भारत भर में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। बाबा की समाधि के पूरे चक्कर लगाने के पहले ही बाबा के हाथ-पैर जोड़ कर मिन्नत मांगने वाला व्यक्ति का सर पटक कर कर माफी मांगने के लिए पेट के बल पर लोटने का सिलसिला तब तक चलता है जब तब कि उसके शरीर से वह तथाकथित भूत यानी कि अदृश्य आत्मा निकल नहीं जाती।

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इस मेले का दृश्य ऐसा होता है जिसमें किसी के हाथ में जंजीर बंधी है, तो किसी के पैरों में बेडिय़ां बंधी है। कोई नाच रहा है, तो कोई सीटियां बजाते हुए चिढ़ा रहा है। लोग कहते हैं कि ये वे लोग है, जिन पर ‘भूत’ सवार हैं। लोग भले ही यकीन न करें, लेकिन यह सच है कि मेले में भूत-प्रेतों के अस्तित्व और उनके असर को खत्म करने का दावा किया जाता है। यहां के पुजारी लालजी यादव बुरी छाया से पीड़ित लोगों के बाल पकड़कर जोर से खींचते हैं। पुजारी कई बार झाड़ा भी लगाते हैं। यहां लंबी कतार में खड़े होकर लोग सिर से भूत-प्रेत का साया हटवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते देखे जा सकते हैं।

मान्यता है कि, जो पीड़ित ठीक हो जाते हैं, उसे यहां गुड़ से तौला जाता है। यहां हर साल टनों गुड़ इकट्ठा हो जाता है, जो यहां आने वाले लोगों को प्रसाद के तौर पा बांटा जाता है। कहा जाता है कि, यहां इतनी मात्रा में गुड़ जमा होने के बावजूद मक्खियां या चीटिंयां नहीं दिखाई देतीं। लोग इसे गुरु साहब बाबा का चमत्कार मानते हैं। समाधि परिक्रमा करने से पहले स्नान करना पड़ता है। यहां मान्यता है कि प्रेत बाधा का शिकार व्यक्ति जैसे-जैसे परिक्रमा करता है, वैसे-वैसे वह ठीक होता जाता है। यहां पर रोज ही शाम को आरती होती है। इस आरती की विशेषता यह है कि दरबार के कुत्ते भी आरती में शामिल होकर शंक, करतल ध्वनि में अपनी आवाज मिलाते है।

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बाबा की पूजा-अर्चना की प्रक्रिया शुरू होते ही प्रेत बाधा पीड़ित व्यक्ति के मुंह से अपने आप में परिचय देती है, पीड़ित व्यक्ति को छोड़ देने की प्रतिज्ञा करती है। इस अवस्था में पीड़ित आत्मा विभूषित हो जाती है और बाबा के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम कर क्षमा याचना मांगता है। एक बात तो यहाँ पर दावे के साथ कही जा सकती है कि प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति यहां आता है तो वह निश्चित ही यहां से प्रेत बाधा से मुक्त होकर ही जाता है।

बाबा की पूजा-अर्चना की प्रक्रिया शुरू होते ही प्रेत बाधा पीड़ित व्यक्ति के मुंह से अपने आप में परिचय देती है, पीड़ित व्यक्ति को छोड़ देने की प्रतिज्ञा करती है। इस अवस्था में पीड़ित आत्मा विभूषित हो जाती है और बाबा के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम कर क्षमा याचना मांगता है। एक बात तो यहाँ पर दावे के साथ कही जा सकती है कि प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति यहां आता है तो वह निश्चित ही यहां से प्रेत बाधा से मुक्त होकर ही जाता है।

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