गुजरात का कच्छ देता हैं परम्परा और आधुनिकता का अनोखा संगम

By: Anuj Mon, 01 June 2020 1:01:51

गुजरात का कच्छ देता हैं परम्परा और आधुनिकता का अनोखा संगम

गुजरात घूमने आये हैं और कच्छ का दौरा नहीं किया तो समझिये कि आपकी गुजरात यात्रा अधूरी रह गयी। एक समय भूकंप के चलते बर्बाद हो चुका कच्छ अपने पैरों पर खड़ा है और बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ राज्य पर्यटन विभाग की ओर से हर वर्ष कच्छ महोत्सव आयोजित किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में लोग उमड़ते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते कच्छ महोत्सव की शुरुआत की थी जिससे इस इलाके में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को काफी लाभ हुआ और क्षेत्र का विकास भी हुआ। गुजरात के सबसे बड़े जिले कच्छ का जिला मुख्यालय भुज है। कच्छ का अधिकांश हिस्सा रेतीला है। जखाऊ, कांडला और मुन्द्रा यहां के मुख्य बंदरगाह हैं। कच्छ जिले में अनेक ऐतिहासिक इमारतें, मंदिर, मस्जिद और हिल स्टेशन आदि पर्यटन स्थलों को देखा जा सकता है।

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धौलावीरा

यह पुरातात्विक स्थल हडप्पा संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। जिला मुख्यालय भुज से करीब 250 किलोमीटर दूर स्थित धौलावीरा यह बात साबित करता है कि एक जमाने में हडप्पा संस्कृति यहां फली-फूली थी। यह संस्कृति 2900 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व की मानी जाती है। सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक अवशेषों को यहां देखा जा सकता है। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख करता है।

इतिहास

प्राचीन भारत में कच्छ की उपस्थिति को साबित करते हुये एक तथ्य मिलता है जिसमें कि खादिर नाम का कच्छ का एक द्वीप हड़प्पा की खुदाई में पाया गया था। कच्छ पर सिन्ध के राजपूत राजाओं का शासन था लेकिन बाद में जडेजा राजपूत राजा खेंगरजी के समय में भुज कच्छ की राजधानी बना। मुगलकाल में 1741 ई0 में लखपतजी-। कच्छ के राजा बने और उन्होनें प्रसिद्ध अजना महल को बनाने का आदेश दिया। लखपतजी लेखकों, नर्तकों और गायकों का सम्मान करते थे और उनके शासनकाल में कच्छ ने सांस्कृतिक रूप से खूब उन्नति की।

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टपकेश्वरी माताजी

भुज से दक्षिण की और 5 माइल दूर भारापर से पास टपकेश्वरी माताजी का मंदिर एक सुन्दर जगह हैं जो कहा जाता है कि ४५० वर्ष पहले यहां कच्छ के तत्कालीन महारावश्री विजयरायजी ने बनवाया था। सुना गया है कि उस समय माताजी ने दर्शन दिये थे तब वहा उनकी प्रतिमा के रुप मे स्थापित हो गई थी जो मुर्त आज भी मंदीर के बाये बाजु पुर्व मे यथास्थित है, और मंदिर के अंदर पुजा के लीए दोहरी स्थापित की गयी हैं। टपकेश्वरी आने पर एक हिमाचल या उत्तर भारत के गढवाल का सा, होने जैसा आनंद महसुस होता है तथा यह रमणीय स्थल है ऐसा भी कह सकते है। टपकेश्वरी मंदिर के पास ही सेकडो वर्षो पुराने कमरे दर्शनार्थीयो के रहने के लीये उस समय के कला को दर्शाते है। मंदिर उत्तर भाग को छोड तीन तरफ से ढक्के पहाडो के बीच मे बना हुआ है, पश्चिम तरफ मे ऊपर की और छोटीसी गुफाऐं है साथ ऊपर के लीये चडाव का रास्ता भी वही से जाता है।

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विजय विलास पैलेस

विजय विलास पैलेस गुजरात राज्य के कच्छ जिले के मांडवी स्थित हैं। यह ऐक रजवाडी महेल है। मांडवी शहर के दरिया किनारे पर स्थित विजय विलास पैलेस कच्छ का पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। विजय विलास पैलेस का निर्माण 1920 जयपुर के शिल्पकार किया गया है। ईस पैलेस में आपको राजपूत शैली की झलक दिखाई देगी। समुद्र किनारे स्थित यह पैलेस पर्यटकों को आकर्षित करता है और यहां पर देश-विदेश से पर्यटक घुमने आते हैं।

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मांडवी बीच

मांडवी बीच कच्छ जिले के मांडवी शहेर में स्थित है। मांडवी बीच कच्छ के मुख्य आकर्षण केंद्रों में से एक है। मांडवी बीच की यात्रा बगेर कच्छ की यात्रा व्यर्थ है। कच्छ खाड़ी में स्थित यहां बीच पुरे देश भर में लोकप्रिय है। मांडवी की स्थापना 1581 में कच्छ के जाडेजा शासक द्वारा किया गया था। उस समय मांडवी व्यावसायिक नगर के था उस वक्त यहां पर 400 समुद्री जहाज थे। मांडवी बीच पर्यटकों की दृष्टि से भी बहुत लोकप्रिय है। यहां पर आप ऊंट की सवारी, फ़ोटोग्राफ़ी, तेरना ये कर सकते हैं। बीच की खुबसूरत नजारा दिखता है, विजय विलास पैलेस भी मांडवी बीच पर स्थित है।

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