Chaitra Navratri Festival 2018: क्यूँ जरूरी है नवरात्रों में कन्या का पूजन
By: Sandeep Gupta Fri, 16 Mar 2018 12:54:54
शास्त्रों में नवरात्रि के अवसर पर कन्या पूजन या कन्या भोज को अत्यंत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। धर्म ग्रंथो के अनुसार सुख, समृद्धि, धन, विद्या, यश, लाभ, निरोगता, दीर्घायु आदि प्राप्त करने के लिए नवरात्र में मां दुर्गा की आराधना का मीठा फल पाने के लिए कन्या पूजन आवश्यक माना गया है। प्रतिदिन एक कन्या तथा अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं का पूजन करने से इन नौ दिनों की आराधना सफल होती है। आइये जानते हैं इसके महत्व को कि कन्या पूजन क्यूँ आवश्यक हैं।
# नवरात्र के समय कन्या पूजन का बड़ा महत्व है। इन दिनों नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिविंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है। इस दिन कन्याओं की जरुर पूजा करना चाहिए।
# दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं। एक वर्ष से छोटी कन्याओं का पूजन, इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह प्रसाद नहीं खा सकतीं और उन्हें प्रसाद आदि के स्वाद का ज्ञान नहीं होता। इसलिए शास्त्रों में दो से दस वर्ष की आयु की कन्याओं का पूजन करना ही श्रेष्ठ माना गया है। यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर उन्हें भोजन कराया जाता है। ऐसी मान्यता है कि होम, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी कन्या पूजन से होती हैं।
# कन्या भोज के लिए जिन नौ बच्चियों बुलाया जाता है उन्हें मां दुर्गा के नौ रूप मानकर ही पूजा की जाती है। कथाओं में कन्याओं की उम्र के अनुसार उनके नाम भी दिए गए हैं। दो वर्ष की कन्या को कन्या कुमारी, तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या को कल्याणी, पांच साल की कन्या को रोहिणी, छह साल की कन्या को कालिका, सात साल की कन्या को चंडिका, आठ साल की कन्या को शाम्भवी, नौ साल की कन्या को दूर्गा और 10 साल की कन्या को सुभद्रा का स्वरूप माना जाता है।
# नवरात्र के सप्तमी तिथि से कन्या पूजन का अधिक महत्व होता है। इस दौरान कन्याओ को ससम्मान घर में बुालकर आवभगत किया जाता है। साथ ही अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं को देवी का रुप मान कर पूजा की जाती है। जिससे कि घर में सुख-समृद्धि आए। और घर से दरिद्रता दूर भाग जाए।