कथा श्री रामभक्त विभीषण की

By: Sandeep Tue, 10 Oct 2017 12:39:53

कथा श्री रामभक्त विभीषण की

श्री रामभक्त विभीषण महर्षि विश्रवा और असुर कन्या कैकसी के पुत्र थे। जिनके बड़े भाई राक्षश राज रावण और कुम्भकर्ण और सुर्न्पंखा इनकी बहन थी। विभीषण विश्रवा के सबसे छोटे पुत्र थे। बचपन से ही इनकी धर्माचरण में रुचि थी। ये भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार तीनों भाइयों ने बहुत दिनों तक कठोर तपस्या करके श्री ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। ब्रह्मा ने प्रकट होकर तीनों से वर माँगने के लिये कहा-

रावण ने अपने महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के अनुसार श्री ब्रह्मा जी से त्रैलोक्य विजयी होने का वरदान माँगा, कुम्भकर्ण ने छ: महीन की नींद माँगी और विभीषण ने उनसे भगवद्भक्ति की याचना की। सबको यथायोग्य वरदान देकर श्री ब्रह्मा जी अपने लोक पधारे। तपस्या से लौटने के बाद रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से सोने की लंका पुरी को छीनकर उसे अपनी राजधानी बनाया और ब्रह्मा के वरदान के प्रभाव से त्रैलोक्य विजयी बना। ब्रह्मा जी की सृष्टि में जितनी भी शरीर धारी प्राणी थे, सभी रावण के वश में हो गये। विभीषण भी रावण के साथ लंका में रहने लगे।

रावण ने जब माता सीता जी का हरण किया, तब विभीषण परायी स्त्री के हरण को महापाप बताते हुए सीता जी को श्री राम को लौटा देने की उसे सलाह दी। किन्तु रावण ने उस पर कोई ध्यान न दिया।

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श्री हनुमान जी सीता की खोज करते हुए लंका में आये। उन्होंने श्री रामनाम से अंकित विभीषण का घर देखा। घर के चारों ओर तुलसी के वृक्ष लगे हुए थे। सूर्योदय के पूर्व का समय था, उसी समय श्री राम-नाम का स्मरण करते हुए विभीषण जी की निद्रा भंग हुईं। राक्षसों के नगर में श्री रामभक्त को देखकर हनुमान जी को आश्चर्य हुआ। दो रामभक्तों का परस्पर मिलन हुआ। श्री हनुमान जी का दर्शन करके विभीषण भाव विभोर हो गये। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि श्री रामदूत के रूप में श्री राम ने ही उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया है।

श्री हनुमान जी ने उनसे पता पूछकर अशोक वाटिका में माता सीता का दर्शन देकर कृतार्थ किया है। श्री हनुमान जी ने उनसे पता पूछकर अशोकवाटिका में माता सीता के दर्शन किये। अशोकवाटिका विध्वंस और अक्षयकुमार के वध के अपराध में रावण हनुमान जी को प्राणदण्ड देना चाहता था। उस समय विभीषण ने ही उसे दूत को अवध्य बताकर हनुमान जी को कोई और दण्ड देने की सलाह दी। रावण ने हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने की आज्ञा दी और विभीषण के मन्दिर को छोड़कर सम्पूर्ण लंका जलकर राख हो गयी थी।

जब भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई कर दी थी तब विभीषण ने पुन: सीता को वापस करके युद्ध की विभीषिका को रोकने की रावण से प्रार्थना की। इस पर रावण ने इन्हें लात मारकर निकाल दिया। तब विभीषण श्री राम के शरणागत हुए। विभीषण का एक गुप्तचर था, जिसका नाम 'अनल' था। उसने पक्षी का रूप धारण कर लंका जाकर रावण की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया और इसकी सूचना भगवान श्रीराम को दी थी।

रावण सपरिवार मारा गया। भगवान श्री राम ने विभीषण को लंका का नरेश बनाया और अजर-अमर होने का वरदान दिया। विभीषण जी सप्त चिंरजीवियों में एक हैं और अभी तक विद्यमान हैं। रामायण से इस चरित्र के बारे में जान सकते हैं। सत्य और धर्म के रास्ते पर चलें, चाहे तुम्हारे खास भी तुम्हारे खिलाफ क्यों न हो। सच बोलो, सत्य और अच्छा हमेशा अकेला होता है पर प्रबल होता है।

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