जापान ने शुरू किया समुद्र में रेडियोएक्टिव पानी छोड़ना, चीन और दक्षिण कोरिया में डर

By: Shilpa Thu, 24 Aug 2023 3:08:01

जापान ने शुरू किया समुद्र में रेडियोएक्टिव पानी छोड़ना, चीन और दक्षिण कोरिया में डर

जापान ने समुद्र में फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट का रेडियोएक्टिव पानी पैसिफिक महासागर में छोड़ना शुरू कर दिया। जापानी समय के मुताबिक दोपहर 1:03 बजे ये प्रोसेस शुरू किया गया। जापान टाइम्स ने बताया है कि पहले दिन करीब 2 लाख लीटर पानी छोड़ा जाएगा। इसके बाद इसे बढ़ाकर 4.60 लाख लीटर कर दिया जाएगा।

न्यूक्लियर प्लांट को मेंटेन करने वाली कंपनी TEPCO ने बताया कि सबसे पहले सैंपल के तौर पर शुरुआती टैंक से थोड़ा पानी छोड़ा गया। इसके पहले और बाद में सभी कंडीशन्स चेक की गईं। इसमें कोई गड़बड़ी नजर नहीं आई। प्लांट से पानी को रिलीज करने वाला पंप 24 घंटे एक्टिव रहेगा।

रेडियोएक्टिव पानी क्यों छोड़ा जा रहा...

12 साल पहले 2011 में आए भूकंप और सूनामी की वजह से फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट में भयानक विस्फोट हुआ था। इसके बाद से ही वहां 133 करोड़ लीटर रेडियोएक्टिव पानी जमा है। अब जापान इसे निजात पाने के लिए इसे बहा रहा है।

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक वहां जमा पानी करीब 500 ओलंपिक साइज स्विमिंग पुल के जितना है। जैसे ही जापान ने इस पानी को समुद्र में मिलाने की बात कही, चीन और दक्षिण कोरिया के लोग डरे हुए हैं।

जापान के रेडियोएक्टिव पानी छोड़ने पर दुनिया की प्रतिक्रिया

रेडियोएक्टिव पाना छोड़े जाने पर चीन साउथ कोरिया को डर है कि ये सी फूड यानी मछली, क्रैब और समुद्री जीवों के जरिए इंसानों के शरीर तक पहुंच सकता है। ट्राइटियम के स्किन पर गिरने से नुकसान नहीं होता, लेकिन शरीर में घुसने से कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

हांगकांग और चीन ने तो जापान से सी फूड इंपोर्ट करने पर ही पाबंदी लगा दी है। वहीं, साउथ कोरिया की स्टु़डेंट यूनियन ने सियोल में जापान की दूतावास में घुसपैठ करने की कोशिश की। कई छात्रों को हिरासत में लिया गया है।

चीन ने कहा है कि जापान ने मंसूबों ने दुनिया को खतरे में डालने का काम किया है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक इससे जापान के पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर बुरा असर पड़ सकता है।

कब तक रहेगा रेडियोएक्टिव मटेरियल का असर

समुद्र में रेडियोएक्टिव पानी रिलीज करने के प्लान को UN की एटॉमिक एजेंसी IAEA अप्रूव कर चुकी है। रेडियोएक्टिव मटेरियल को रिलीज करने के लिए ALPS प्रोसेस पूरी करनी पड़ती है। इसे पूरा करने के बाद ही रेडियोएक्टिव पानी को समुद्र में छोड़ा जा रहा है। एक हजार टैंक्स से रखे पानी को एक साथ नहीं बल्कि 30 साल तक रिलीज किया जाएगा। रोज 5 लाख लीटर रेडियोएक्टिव पानी समुद्र में मिलाया जाने का लक्ष्य रखा है।

अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि समुद्र में इसका असर कम हो। फिलहाल जिस इलाके में पानी छोड़ा जाएगा वहां से 3 किलोमीटर तक के इलाके में मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई है।

एक वैज्ञानिक रिचमोंड ने साइंस के मुद्दों को कवर करने वाली वेबसाइट नेचर को बताया कि 3 किलोमीटर के दायरे में मछली पकड़ने पर रोक लगाने से कुछ नहीं होगा। इसकी वजह समुद्री जीवों का लंबी दूरी तय करना है। इस इलाके की मछलियों को दूसरी बड़ी मछलियां खाएंगी जो समुद्र में दूर तक जाती हैं। अगर ये मछली सी फूड कंपनियों के जरिए आम लोगों तक पहुंचाएंगी तो रेडियोएक्टिव पार्टिकल्स इंसान के शरीर में आसानी से जा सकते हैं।

रिचमोंड के मुताबिक इस रेडियोएक्टिव पानी का असर कब तक रहेगा इसे बता पाना काफी मुश्किल है। इसका असर लंबे समय तक भी रह सकता है। वहीं, स्वीडन में न्यूक्लियर केमिस्ट्री के प्रोफेसर मार्क फोरमेन का कहना है कि समुद्री जीवों पर रेडिएशन का असर काफी कम होगा, इसमें पाबंदियां लगाने जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए।

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