अनोखा मंदिर जिसका निर्माण मनुष्य जाति ने नहीं किया! भारतीय कला का बेजोड़ नमूना

भारत देश को अपने मंद्रों के लिए जाना जाता है जिसमें अनोखी भारतीय कला देखने को मिलाती हैं। कई मंदिर तो ऐसे हैं जिनपर विश्वास ही नहीं हो पाटा हैं कि ये मनुष्यों द्वारा बनाए गए है। ऐसा ही एक मंदिर कर्नाटक के द्वारसमुद्र में स्थित हैं जिसके बारे में कहा जाता हैं कि इसका निर्माण मनुष्य जाति ने नहीं किया हैं। हम बात कर रहे हैं कर्नाटक के हसन जिले में दक्कन के पठार पर स्थित होयसलेशवर मंदिर के बारे में।

होयसलेशवर मंदिर एक शैव मंदिर है, लेकिन यहां भगवान विष्णु, भगवान शिव और दूसरे देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों को सॉफ्टस्टोन से बनाया गया है, जो समय के साथ कठोर हो जाता है। इस मंदिर के अंदर बहुत कम रोशनी में भगवान शिव की एक शानदार मूर्ति विराजमान है। शिव जी की मूर्ति के मुकुट पर मानव खोपड़ियां बनी हैं, जो मात्र 1 इंच चौड़ी हैं। इन छोटी-छोटी खोपड़ियों को इस तरह से खोखला किया गया है कि उससे गुजरने वाली रोशनी आंखों के सुराख से होती हुई मुंह में जाकर कानों से बाहर लौट आती हैं। हजारों साल पहले हाथ से बनाए गए ये सुराख बहुत ही अद्भुत हैं।

होयसलेशवर मंदिर एक ऊंचे प्लेटफार्म पर बनी है, और इस प्लेटफार्म पर 12 नक्काशीदार परतें बनी हुई हैं। सबसे कमाल की बात ये है कि इन परतों को जोड़ने के लिए चूने या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ था, बल्कि इंटरलॉकिंग के जरिए इसे जोड़ा गया था। पत्थरों की इंटरलॉकिंग न सिर्फ राजा को पसंद आई, बल्कि इसी इंटरलॉकिंग की वजह से आज भी मंदिर मजबूती के साथ खड़ा हुआ है। इसकी बाहरी दीवारों पर सैकड़ों खूबसूरत मूर्तियां बनी हुई हैं।

इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि हर मूर्ति को एक ही पत्थर से बनाया गया है। इसके साथ ही मंदिर के अंदर पत्थर के स्तम्भ भी बने हैं। पत्थर से बने ये स्तम्भ गोलाकार डिजाइन में हैं, जिसे हाथ से बना पाना नामुमकिन ही लगता है। विशेषज्ञों की माने तो ये काम मशीन के बिना संभव नहीं है। लेकिन यह बात सोचने वाली है कि उस समय में हमारे पूर्वजों ने पत्थरों को घुमाने के लिए किस मशीन का प्रयोग किया होगा?

होयसलेशवर मंदिर वास्तुशिल्प का एक बेजोड़ नमूना है जो आज भी सभी के लिए आकर्षण का केंद्र है। हालांकि इस बात का कोई साबुत नहीं है कि मंदिर को बनाने में मशीनों का इस्तेमाल किया गया था। ऐसे में कई लोगों का ये भी मानना है कि इस मंदिर का निर्माण मनुष्य जाति ने किया ही नहीं है।