Holi Special 2019: इस गाँव में 200 साल से निभाई जा रही है होली की यह परंपरा, होता है तलवारों का इस्तेमाल

हर साल की तरह इस साल भी पूरे देश में होली खेली जा रही है और सभी जगह होली खेलने का अपना अनूठा तरीका हैं। इसी के साथ हमारे देश में होली के साथ ऐसे कई अनोखे रीती-रिवाज भी किये जाते है जो पिछले कई सालों से निभाए जा रहे हैं। आज हम भी आपको होली से जुड़ी ऐसी ही एक अनोखी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जो पीछले 200 सालों से निभाई जा रही है और इसमें तलवारों का इस्तेमाल किया जाता हैं। तो आइये जानते है इसके बारे में पूरी जानकारी।

- इस गांव में कुछ ऐसी है परंपरा

ये जगह और कोई नहीं बल्कि मेरठ शहर से करीब 12 किमी की दूरी पर मौजूद बिजौली गांव हैं। गांव के स्थानीय निवासी करीब 200 सालों से इस परंपरा का निभाते हुए आ रहे हैं। परंपरा के अनुसार गांव वाले अपने शरीर को सुंओं से बींधते हैं और पेट में तलवार को बांधते हैं। वहीं गांव में हर साल दुल्हैंडी के दिन शाम को गांव में तख्त निकालने की परंपरा भी है। स्थानीय निवासियों की मानें तो गांव में यह परंपरा करीब 200 सालों से चली आ रही है।

बताते हैं कि 200 साल पहले गांव में एक बाबा आए थे। उन्होंने दुल्हैंडी पर इस परंपरा की शुरुआत की। उनके समय एक तख्त की शुरुआत हुई थी। ऐसी मान्यता है तभी से गांव में शरीर को बींधकर तख्त निकाले जाते हैं। परंपरा के अनुसार अगर इन तख्तों को न निकाला जाए तो गांव में प्राकृतिक आपदा भी आ सकती है। गांव में बाबा की समाधि भी मौजूद हैत्र जहां एक मंदिर बना दिया गया है।

- सात तख्तों से होती है परिक्रमा


गांव में पहले एक तख्त निकाला जाता था। मौजूदा समय में गांव में सात तख्त निकाले जाते हैं। एक तख्त पर तीन लोग अपने शरीर को बींधकर खड़े रहते हैं। वहीं एक आदमी उनकी देखभाल के लिए रहता है। इसी के साथ-साथ गांव वाले होली के गीतों पर झूमते हुए बुध चौक से निकलते हुए पूरे गांव की परिक्रमा लगाते हैं। इस परंपरा में कुछ लोग ही शामिल नहीं होते हैं, बल्कि पूरा गांव शामिल होता है। पूरा गांव झूमता गाता हुआ पूरे गांव की परिक्रमा करता है।

- रंग नहीं लगाई जाती है राख

शरीर की खाल में छुरी घोंपी जाती है। मुंह और और बाजुओं के बीच से सुंए गाड़े जाते हैं। पेट में तलवार भी घोंपर जाती है। इस नजारे को देखकर कोई भी अचंभित हो सकता है। शायद ही ऐसा हैरान और रोमांच पैदा करने वाली होली का नजारा कभी किसी ने नहीं देखा होगा। ताज्जुब की बात तो ये है कि होलिका दहन के एक दिन बाद होने वाले इस परंपरा से पहले बींधने वाले लोग अपने शरीर पर होली की राख लगाते हैं, जिससे जख्मों के दर्द को सहन किया जा सके। वहीं जिस छुरी को बदन में घोंपा जाता है, उसका 15 दिन पहले आग में तपाकर जंग साफ किया जाता है।

- कुछ ऐसा होता है माहौल

तख्त पर बिंधने वाले लोग रंग-बिरंगे कपड़ों में होते हैं। तख्त को भी सजाया जाता है। पूरे गांव में परिक्रमा के समय गुड़, आटा, रुपये और चादर चढ़ाई जाती है। जितना भी चढ़ावा आता है, उसको गांव के मंदिर में चढ़ाया जाता है। इस परंपरा को देखने के लिए गांव से बाहर रह रहे लोग गांव जरुर आते हैं। पूरे गांव में मेले जैसा माहौल होता है।