पूर्वोत्तर का 'शिवाजी' लचित बोरफुकन, सैनिकों में जोश के लिए काट डाला अपने मामा का सिर

भारत का रोचक इतिहास बहुत बड़ा हैं जिसके कुछ पन्ने ऐसे हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। ऐसा ही एक अनछुहा पन्ना हैं लचित बोरफुकन जिसे पूर्वोत्तर का 'शिवाजी' के रूप में जाना जाता था। मुगलों के खिलाफ बहादुरी से लड़ी लड़ाई के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। इनका पूरा नाम 'चाउ लासित फुकनलुंग' हैं जो कि असम के अहोम साम्राज्य के एक सेनापति थे। जहां बड़े से बड़े राजा भी मुगलों के सामने घुटने टेक देते थे, वही इस सेनापति ने 1667 ईस्वी में मुगल सम्राट औरंगजेब को चुनौती दे दी थी और न सिर्फ चुनौती बल्कि उसकी सेना को बुरी तरह हराया भी था।

1671 ईस्वी में मुगल साम्राज्य और अहोम साम्राज्य के बीच हुई उस लड़ाई को 'सराईघाट का युद्ध' कहा जाता है। यह लड़ाई इसलिए लड़ी गई थी, क्योंकि लचित ने मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी को छुड़ा कर उसपर फिर से अपना अधिकार कर लिया था और उन्हें गुवाहाटी से बाहर धकेल दिया था। इसी गुवाहाटी को फिर से पाने के लिए मुगलों ने अहोम साम्राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। उनकी सेना में 30,000 पैदल सैनिक, 15,000 तीरंदाज, 18,000 घुड़सवार, 5,000 बंदूकची और 1,000 से अधिक तोपों के अलावा नौकाओं का एक विशाल बेड़ा था, लेकिन इसके बावजूद लचित की रणनीति के आगे उनकी एक न चली और वो हार कर वापस लौट गए।

कहते हैं कि लचित बोरफुकन ने सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए कि असम यानी अहोम साम्राज्य सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दे, अपने मामा का ही गला काट दिया था। इसके पीछे जो कहानी है, वो बेहद ही हैरान करने वाली है। माना जाता है कि लचित ने अपने सैनिकों को सिर्फ एक रात में एक दीवार बनाने का आदेश दिया था और इसे बनवाने का जिम्मा अपने मामा को दिया था। बीमार होने के बावजूद जब लचित उस जगह पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि सारे सैनिक हताशा और निराशा से भरे हुए हैं, क्योंकि उन्होंने पहले ही ये मान लिया था कि वो सूर्योदय से पहले दीवार का निर्माण नहीं कर पाएंगे।

यह देखकर लचित को अपने मामा पर बहुत गुस्सा आया कि वो काम करने के लिए अपने सैनिकों का उत्साह भी नहीं बढ़ा सके। इसी गुस्से में उन्होंने अपनी तलवार निकाली और एक झटके में ही अपने मामा का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में उन्होंने खुद सैनिकों में इतना जोश भर दिया कि उन्होंने सूर्योदय से पहले ही दीवार खड़ी कर दी। एक सेनापति के तौर पर उन्होंने अपने सैनिकों में इसी उत्साह और जोश को बनाए रखा, जिसकी बदौलत उन्हें युद्ध में जीत हासिल हुई।

लचित बोरफुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय को याद करते हुए पूरे असम में हर साल 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। लचित के नाम पर ही नेशनल डिफेंस एकेडमी (राष्ट्रीय रक्षा अकादमी) में बेस्ट कैडेट गोल्ड मेडल भी दिया जाता है, जिसे लचित मेडल कहा जाता है।