हर जगह और समुदाय के अपने कुछ रिती-रिवाज होते है जिन्हें वे कई सालों से मनाते आ रहे हैं और उनका पालन करते आ रहे हैं। इन्हीं में से कुछ रिवाज ऐसे होते हैं जिनपर विश्वास कर पाना बहुत मुश्किल होता है और इन प्रथाओं के चलते इंसानियत को शर्मसार होना पड़ता हैं। हम बात कर रहे हैं दक्षिणी घाना में स्थित गांव ‘माफी दोवे’ की। तो आइये जानते है इसके बारे में।
यहाँ के निवासी तीन नियमों का पालन सख्ती से करते आ रहे हैं। गांव में महिला किसी बच्चे को जन्म नहीं दे सकती है, गांव में किसी का अंतिम संस्कार करने की मनाही है और इसके साथ ही गांव में पशुपालन नहीं कर सकते हैं लोग। अब आप सोच रहे होंगे कि इन अंधविश्वासों के पीछे की वजह क्या है? चलिए इस बारे में भी हम बताते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि इस गांव के संस्थापक एक शिकारी थे जिनका नाम तोगबे ग्बेवफिया अकिति था। तोगबे इस स्थान पर जब पहली बार आए थे तब एक आकाशवाणी हुई थी। उनसे कहा गया था कि यह जगह बेहद पवित्र है और अगर वह यहां बसना की चाह रखते हैं तो ऊपर दिए गए तीन नियमों का पालन करना होगा।
आज के दिन में गांव में 5000 लोग रहते हैं। यहां पशु-पक्षी देखने को नहीं मिलेंगे हालांकि आसमान पर कुछ जंगली पक्षी नजर आते हैं। जब गांववालों को मीट खाने की इच्छा होती है तो वे पड़ोस के गांव से किसी पशु को लेकर आते हैं और तुंरत उसकी बलि चढ़ा देते हैं। वे उसे ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रख सकते हैं चूंकि गांव में पशुपालन की मनाही है।
गांव में किसी की कब्र भी नहीं है। यहां जब किसी की मौत हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार गांव से बाहर किया जाता है। किसी की तबीयत जब बिगड़ने लगती है या लोगों को ऐसा लगता है कि जब वह ज्यादा देर या दिन तक जीवित नहीं रहेगा तो उसे गांव से बाहर लेकर जाया जाता है।
‘माफी दोवे’ में गर्भवती महिला को डिलीवरी के 1-2 महीने पहले ही गांव से दूर कर दिया जाता है। हालांकि अब महिलाएं इस नियम को मानना नहीं चाहती हैं क्योंकि इसमें काफी खतरा है। पहले पहल गांव के बड़े-बुजुर्गों ने इसे खारिज कर दिया, लेकिन जब महिलाओं ने और विरोध किया तो उन्हें यह बात माननी पड़ी। महिलाओं की मांग यह थी कि गांव के पास एक छोटा सा अस्पताल जैसा कुछ बनाया जाए ताकि प्रसव में ज्यादा दिक्कत न हो।