पाकिस्तान का यह शहर हिन्दू-मुसलमान एकता का प्रतीक, हिंसा का कोई काम नहीं

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और उसक फितरत को तो सभी जानते हैं। इसी के साथ ही पाकिस्तान में हिंदुओं की खराब हालत का मुद्दा भी समय-समय पर उठता रहता हैं। मीडिया में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और जबरन धर्म परिवर्तन की समस्या उठाई जाती रहती हैं। इसी बीच पाकिस्तान का ही एक ऐसा शहर जिसके बारे में जानकार आपको बहुत आश्चर्य होगा। यह शहर हैं मीठी जो कि हिन्दू-मुसलमान एकता के लिए जाना जाता हैं। तो आइये जानते हैं इस अनोखे शहर के बारे में।

इस शहर का नाम है मीठी, जो मीठी थारपारकर जिले में स्थित है। यह शहर पाकिस्तान के लाहौर से करीब 875 किलोमीटर, जबकि भारत के गुजरात के अहमदाबाद से करीब 340 किलोमीटर दूर है। इस शहर में हिंदू-मुस्लिम एकता की अनोखी मिसाल देखने को मिलती है। मीठी की कुल आबादी करीब 87 हजार है, जिसमें से करीब 80 फीसदी लोग हिंदू हैं, जबकि पूरे पाकिस्तान में करीब 95 फीसदी मुसलमान हैं। कहा जाता है कि इस शहर में जब भी कोई धार्मिक त्योहार या सांस्कृतिक आयोजन होता है तो हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग उसमें मिल-जुलकर हिस्सा लेते हैं।

कहते हैं कि इस शहर में हिंदू और मुस्लिम दिवाली और ईद मिल-जुलकर मनाते हैं। मीठी में हिंदू लोग मुहर्रम के जुलूसों में हिस्सा लेते हैं और कई बार तो मुसलमानों के साथ रोजे भी रखते हैं। वहीं, हिंदुओं के धर्म का सम्मान करते हुए यहां के मुसलमान गाय को नहीं काटते। यहां तक कि वो बीफ भी नहीं खाते। इस शहर में क्राइम रेट पाकिस्तान के दूसरे शहरों की अपेक्षा बिल्कुल कम है। यहां अपराध दर महज दो फीसदी है और सबसे खास बात कि यहां धार्मिक असहिष्णुता कभी भी देखने को नहीं मिलती।

इस शहर में कई मंदिर भी हैं, जिसमें सबसे प्रसिद्ध श्रीकृष्ण मंदिर है। कहते हैं कि जब यहां हिंदू मंदिरों में पूजा करते हैं, तब अजान के लिए तेज आवाज में स्पीकर नहीं बजाए जाते हैं और नमाज के वक्त मंदिरों में घंटियां नहीं बजाई जाती हैं। यहां के मुसलमानों का कहना है कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में जब भारतीय सेनाएं मीठी तक पहुंच गई थीं, तब उन्हें रातोंरात यहां से भागना पड़ा था। हालांकि बाद में यहां रहने वाले हिंदुओं ने उन्हें फिर से यहां रहने के लिए मनाया, उसके बाद फिर से वो लोग यहां रहने आ गए।