राजस्थान / जालोर में गिरा 2.78 किलो वजनी उल्कापिंड

जालोर के सांचौर कस्बे में शुक्रवार सुबह लोगों में अफरा-तफरी का माहौल दिखाई दिया। दरअसल यहां 2.78 किलोग्राम वजनी उल्कापिंड आकर गिरा है। जिसको देखने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। सांचौर थानाधिकारी अरविंद कुमार ने बताया कि सुबह 7 बजे सूचना मिली कि गायत्री कॉलेज के पास आसमान से तेज आवाज के साथ एक चमकदार पत्थर गिरा है। वहां पहुंचकर देखा तो काले रंग का धातु जैसा एक टुकड़ा जमीन में करीब 4-5 फीट की गहराई में धंसा हुआ था। उस समय यह टुकड़ा काफी गरम था।

वहीं, वहां मौजूद लोगों का कहना है कि उन्होंने आसमान से तेज चमक के साथ एक टुकड़े को नीचे गिरते देखा। नीचे गिरते ही जोरदार धमाका हुआ। इस उल्कापिंड के ठंडा होने पर पुलिस ने उसे कांच के एक जार में रखवा दिया है। पुलिस का कहना है कि इसे विशेषज्ञों को दिखाया जाएगा।

विज्ञान क्या कहता है?

आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं।