चीन की इस गलती की वजह से 62 साल पहले भी गई थी करोड़ों लोगों की जान

चीन के वुहान से उठा कोरोना वायरस (COVID-19) आज पूरी दुनिया के लिए चिंता बनता जा रहा हैं। 6 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं और मौत का आंकड़ा 27 हजार को पार कर चुका हैं। अब यह आंकड़ा कहां जाकर रुकेगा कुछ कहा नहीं जा सकता हैं। अमेरिका द्वारा इसे चीन की बड़ी गलती बताया गया हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 62 साल पहले भी चीन से एक बड़ी गलती हुई थी जिसकी वजह से करोंड़ों लोगों की जान चली गई थी। चीन द्वारा इसे बाद में सुधारने की कोशिश की गई थी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस घटना को 'ग्रेट चाइनीज फेमिने' के नाम से जाना जाता है। शायद ही ऐसा कोई चीनी नागरिक होगा, जो इस घटना के बारे में न जानता हो।

1958 की बात है। तब चीन की सत्ता संभाल रहे थे माओ जेडॉन्ग, जिन्हें माओ से-तुंग भी कहा जाता है। उन्होंने एक अभियान शुरू किया था, जिसे 'फोर पेस्ट कैंपेन' के नाम से जाना जाता है। इस अभियान के तहत उन्होंने चार जीवों (मच्छर, मक्खी, चूहा और गौरैया चिड़िया) को मारने का आदेश दिया था। उनका कहना था ये चारों जीव किसानों की मेहनत बेकार कर देते हैं, खेतों में मौजूद उनके सारे अनाज खा जाते हैं।

अब चूंकि मच्छर, मक्खी और चूहों को मारना थोड़ा मुश्किल काम था, क्योंकि वो आसानी से खुद को कहीं छुपा लेते थे, लेकिन गौरैया चिड़ियों की तो आदत है कि वो हमेशा इंसानों के बीच ही रहना पसंद करती हैं। लिहाजा वो माओ जेडॉन्ग के आदेश का शिकार बन गईं और पूरे चीन में उन्हें ढूंढ-ढूंढकर मारा जाने लगा। यहां तक कि उनके घोंसलों को भी उजार दिया गया, ताकि कोई जिंदा न बच पाए।

लोग बर्तन, टिन या ड्रम बजा-बजाकर गौरैया को उसकी जगह से उड़ाते और उसे तब तक कहीं बैठने नहीं देते, जब तक कि वह उड़ते-उड़ते थक न जाए और आसमान से ही गिर कर मर न जाए। इतना ही नहीं, जो व्यक्ति जितनी संख्या में गौरैया मारता था, उसे उतना ही बड़ा इनाम भी मिलता था। इस लालच में चीनी लोग वो कर बैठे, जिसकी उम्मीद शायद ही किसी ने की हो।

एक घटना है, जब गौरैया का एक झुंड बीजिंग स्थित पोलैंड के दूतावास में जाकर छुप गया, लेकिन चीनी लोग उन्हें मारने के लिए वहां तक भी पहुंच गए। हालांकि दूतावास के अधिकारियों ने लोगों को अंदर नहीं घुसने दिया। लिहाजा लोगों ने एक तरकीब निकाली। उन्होंने दूतावास को चारों तरफ से घेर लिया और ड्रम पीटने लगे। यह सिलसिला लगातार दो दिनों तक चला। आखिरकार गौरैयों का झुंड अधिक शोर की वजह से दूतावास के अंदर ही मर गया, जिसके बाद सफाई कर्मियों ने उन्हें दूतावास से बाहर फेंक दिया।

साल 1960 में माओ जेडॉन्ग ने गौरैया को मारने का अपना इरादा तब बदल दिया, जब चीन के ही एक मशहूर पक्षी विज्ञानी शो-शिन चेंग ने उन्हें बताया कि गौरैया बड़ी संख्या में अनाज के साथ-साथ उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े भी खा जाती हैं। इस बीच चीन में चावल की पैदावार बढ़ने के बजाय लगातार घटती जा रही थी, जिसके बाद माओ ने आदेश दिया कि गौरैया को न मारा जाए बल्कि उनकी जगह पर अनाज खाने कीड़ों (टिड्डों) को मारा जाए।

हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी। गौरैया के न होने से टिड्डों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि सारी फसलें बर्बाद हो गईं। नतीजतन चीन में एक भयानक अकाल पड़ा और देखते ही देखते करोड़ों लोग भूखमरी से मारे गए। चीनी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, करीब 15 मिलियन यानी 1.50 करोड़ लोगों की मौत भूखमरी से हुई थी। हालांकि कुछ अन्य रिपोर्ट्स के मुताबिक, 15-45 मिलियन यानी 1.50-4.50 करोड़ लोग भूखमरी की वजह से मारे गए थे। यह चीन के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थी।