आजतक नहीं सुलझी जमीन के नीचे दबे भगवान शंकर के इस रहस्यमय लोक की गुत्थी

भारत को अपने पौराणिक इतिहास के लिए भी जाना जाता हैं जहाँ कई ऐसी जगह हैं जो पुराणों से जुड़ी हुई हैं। इन जगहों में कईयों का रहस्य आज भी नहीं सुलझाया जा सका हैं। आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसी ही गुफा के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने अद्भुत रहस्य और खासियत के वजह से काफी मशहूर हैं। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा के बारे में जिसे भगवान शिव का रहस्यलोक भी कहा जाता हैं। मान्यता है कि इस गुफा में हिंदू धर्म के 33 करोड़ देवी-देवता एकसाथ निवास करते हैं।

यह गुफा भक्तों के आस्था का केंद्र है। यह गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फीट अंदर है। पाताल भुवनेश्वर गुफा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमांत कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस गुफा की खोज आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने की थी।

मान्यता ये भी है कि द्वापर युग में पांडवों ने यहां शंकर भगवान के साथ चौपाड़ खेला था। कलयुग में जब जगत गुरू शंकराचार्य को 772 ई। के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। आज के समय में पाताल भुवनेश्वर गुफा सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है। देश-विदेश से कई सैलानी इस प्राचीन गुफा और यहां स्थित मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं।

पाताल भुवनेश्वर गुफा से जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काटने के बाद यहीं पर रखा था, जिसे आज भी पूजा जाता है। वहीं भगवान शिव की लीला स्थली होने के कारण उनकी विशाल जटाएं इन पत्थरों पर नजर आती हैं। इस गुफा में शिव जी की तपस्या के कमण्डल, खाल सब नजर आते हैं।

पाताल भुवनेश्वर गुफा में चारों युगों के प्रतीक में 4 पत्थर स्थापित किए गए हैं। इनमें से एक पत्थर को कलयुग का प्रतीक माना जाता है, जो धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। कहा जाता है कि अगर यह पत्थर दीवार से टकरा जाएगा, तो उसी दिन कलयुग का अंत हो जाएगा। इसके साथ गुफा में ऐसी कई रहस्यमय चीजें मौजूद हैं, जिसके वजह से यह गुफा हमेशा चर्चा में रहता है।