हाल ही में दिल्ली में हुए 'हुनर हाट' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री पहुंचे थे और उन्होनें वहां बिहार के प्रसिद्द लिट्टी-चोखा का स्वाद लिया था। मीडिया में इसे बिहार के चुनाव से जोड़ा गया। लिट्टी-चोखा को बिहार की पारंपरिक व्यंजन के रूप में जाना जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई और यह चलन में कैसे आया। तो आइये जानते है इसके पीछे के रोचक इतिहास के बारे में।
बिहार एक बड़ा राज्य है लेकिन लिट्टी का चलन मिथिला में कम, मगध और भोजपुर क्षेत्र में अधिक दिखता है। माना जाता है कि लिट्टी चोखा का गढ़ मगध (गया, पटना और जहानाबाद वाला इलाका) है। चंद्रगुप्त मौर्य मगध के राजा थे, जिनकी राजधानी पाटलिपुत्र थी, लेकिन उनका साम्राज्य अफगानिस्तान तक फैला था। कुछ जानकारों का कहना है कि चंद्रगुप्त के सैनिक युद्ध के दौरान लंबे रास्तों में आसानी से लिट्टी जैसी चीज खाकर आगे बढ़ते जाते थे। हालांकि इसके ठोस एतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलते।
18वीं सदी की कई किताबों में लंबी तीर्थयात्रा पर निकले लोगों का मुख्य भोजन लिट्टी-चोखा और खिचड़ी बताया गया है। हालांकि पक्के तौर पर एतिहासिक प्रमाणों के साथ नहीं कहा जा सकता कि लिट्टी की शुरूआत बिहार में ही हुई थी। आटे को आग पर सेंकने की कई विधियां देश भर में चलन में रही हैं जैसे मेवाड़ और मालवा की बाटी जिसे दाल के साथ खाया जाता है।18वीं सदी की कई किताबों में लंबी तीर्थयात्रा पर निकले लोगों का मुख्य भोजन लिट्टी-चोखा और खिचड़ी बताया गया है। हालांकि पक्के तौर पर एतिहासिक प्रमाणों के साथ नहीं कहा जा सकता कि लिट्टी की शुरूआत बिहार में ही हुई थी। आटे को आग पर सेंकने की कई विधियां देश भर में चलन में रही हैं जैसे मेवाड़ और मालवा की बाटी जिसे दाल के साथ खाया जाता है।