इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में बेतहाशा बढ़ती आबादी का असर यहां के करात बिवाक कब्रिस्तान पर दिखाई दे रहा है। जगह की कमी के चलते यहां शवों को एक के ऊपर एक दफनाया जा रहा है। ब्रिटिश अखबार 'द गार्जियन' ने करात बिवाक और जकार्ता की इस समस्या पर रिपोर्ट प्रकाशित की है। 2017 में प्रशासन ने नई कब्रें बनाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसके लिए वैकल्पिक इंतजाम नहीं किए। लिहाजा, हालात बदतर होते गए। कई कब्रें तो ऐसी हैं, जहां एक के ऊपर एक छह शव तक दफन किए गए। आमतौर पर ऐसा उन मृतकों के साथ किया जा रहा है जो एक ही परिवार के हैं। यहां कुल 48 हजार कब्रें हैं। इनमें 1 लाख से ज्यादा शव दफनाए जा चुके हैं।
कब्रिस्तान में दफनाने के लिए जगह नहींजकार्ता में कुल 84 छोटे-बड़े कब्रिस्तान हैं। इनमें से एक चौथाई में अब दफन के लिए जगह नहीं है। कमेटियां और प्रशासन नई कब्रों की मंजूरी नहीं दे रहा। स्थानीय प्रशासन भी मजबूर है। इसके लिए नियमावली है। दो शवों को दफन करने के लिए एक मीटर का अंतर जरूरी है। कब्र कम से कम तीन साल पुरानी होनी चाहिए। तभी यहां दूसरा शव दफन किया जा सकता है।
करात बिवाक कब्रिस्तान के प्रमुख सैमान दार्शनिक अंदाज में अपना पक्ष रखते हैं। वे कहते हैं, 'मृतकों के लिए स्थान कोई मुद्दा नहीं। स्थान का मसला तो जीवितों के लिए होता है।' वे मानते हैं कि जगह की कमी के कारण कई बार विवाद और बहस के हालात बनते हैं। एक महिला ने अपने पूर्व पति को इसलिए पारिवारिक कब्र में दफनाने की जगह नहीं दी, क्योंकि उसने दूसरा विवाह कर लिया था। ऐसे ही कुछ पारिवारिक विवाद के मामले भी आते हैं। प्रशासन ने तीन साल पहले हालात को भांप लिया था और लोगों को इस समस्या के प्रति जागरुक करने की भी पहल की थी। इसके लिए बाकायदा प्रचार माध्यमों में विज्ञापन भी दिए गए थे।
कब्र हासिल करने के लिए देने पड़ते है पैसेजकार्ता में जनसंख्या का घनत्व काफी है। और शहर में रोज करीब 80 से 100 शव दफनाए जाते हैं। नई कब्र हासिल करने के लिए करीब 5,500 रुपए देने होते हैं। इसके बाद हर तीन साल पर लाइसेंस फीस भी देनी होती है।
हरे-भरे बागान हटाकर बनाया गया कब्रिस्तान शहर के दक्षिणी हिस्से में कालिबाता कब्रिस्तान है। यहां किसी वक्त हरे-भरे बागान हुआ करते थे। अब इन्हें हटाकर कब्रिस्तान का विस्तार किया गया है। उत्तरी जकार्ता में 495 एकड़ में नया कब्रिस्तान बनाने की तैयारी है। यह 2021 में तैयार हो जाएगा। एक अधिकारी के मुताबिक, परेशानी गरीबों को ज्यादा है।