एक आम इंसान ने रोका 'इंडिया गेट' पर होने वाला आतंकी हमला, जानें कैसे

दिल्ली का इंडिया गेट भारत की शान कहा जाता हैं जो कि पर्यटन के लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। यहां पर सैलानियों का जमावड़ा लगा ही रहता हैं। क्या आपको पता हैं कि पहले इंडिया गेट पर सेना की तैनाती नहीं होती थी और आप इंडिया गेट के पास जाकर उसे छू भी सकते थे। लेकिन 23 फरवरी, 2003 को सबकुछ बदल गया और अचानक वहां सेना के जवान तैनात हो गए। यह सब हुआ एक आतंकी हमले की साजिश की वजह से जिसे एक आम इंसान में रोका था। तो आइये जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में।

दरअसल, कश्मीर में साल 2002 में मारे गए एक आतंकी की डायरी के आधार पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कई दिनों से एक ईमेल आईडी की जांच कर रही थी, जिसपर अजीबोगरीब मैसेज आ रहे थे और उस ईमेल से मैसेज भेजे भी जा रहे थे। हालांकि उस मैसेज से कुछ खास पता नहीं चल पा रहा था और चूंकि ईमेल भी दिल्ली के अलग-अलग इलाकों के साइबर कैफे से भेजे जा रहे थे, इसलिए पुलिस को भी उसे भेजने वाले को ढूंढने में परेशानी हो रही थी। लेकिन फिर भी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल उस ईमेल आईडी पर नजर बनाए हुए थी। इस मिशन को लीड कर रहे थे तत्कालीन एसीपी प्रमोद कुशवाहा।

13 फरवरी, 2003 को अचानक नेहा नाम से बनी एक ईमेल आईडी पर मैसेज आया, जिसने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को और भी चौकन्ना कर दिया। इस मैसेज में फुटबॉल और मैच का जिक्र किया गया था। यहां दिल्ली पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि फुटबॉल का मतलब शायद बम हो सकता है और मैच का मतलब धमाका यानी आतंकी हमला। हालांकि यह धमाका कब होगा और कहां होगा, इसके बारे में उस मैसेज में कोई जिक्र नहीं किया गया था। इसी बीच 18 फरवरी को एक दूसरे ईमेल आईडी से एक दूसरे ईमेल आईडी पर मैसेज आया, जिसमें एक कोड लिखा हुआ था। बस फिर क्या था, एसीपी प्रमोद कुशवाहा की स्पेशल सेल की टीम उस कोड को डिकोड करने में जुट गई।

स्पेशल सेल की टीम ने दिन-रात एक कर दिया, फिर भी वो उस खुफिया कोड को डिकोड करने में नाकाम रही। इस दौरान कई क्रिप्टोलॉजिस्ट से भी मदद मांगी गई, लेकिन वो भी इस कोड को डिकोड करने में असफल रहे। दरअसल, क्रिप्टोलॉजिस्ट खुफिया कोड को डिकोड करने वाले विशेषज्ञ को कहा जाता है। चूंकि कोड डिकोड नहीं हो रहा था तो स्पेशल सेल की टीम तो परेशान थी ही, साथ ही साथ जिनके नेतृत्व में यह मिशन हो रहा था, वो एसीपी प्रमोद कुशवाहा भी परेशान थे।

इसी बीच 19 फरवरी को प्रमोद कुशवाहा से मिलने के लिए उनके दफ्तर उनके स्कूल का एक दोस्त आया, जो बेरोजगार था। उसका नाम था विवेक ठाकुर। चूंकि प्रमोद कुशवाहा उस कोड को लेकर काफी परेशान थे, इसलिए विवेक के पूछने पर उन्होंने उस कोड के बारे में उसे बता दिया और कहा कि हमारी टीम इसे डिकोड ही नहीं कर पा रही है। अब यह बताने की देर थी कि विवेक उस कोड को डिकोड करने में जुट गया। उसने काफी मेहनत की और आखिरकार वह उस खुफिया कोड को डिकोड करने में सफल रहा।

दरअसल, उस कोड में 'इंडिया गेट' पर आतंकी हमले की बात कही गई थी और तारीख तय की गई थी 25 फरवरी, 2003। इधर, जब कोड को लेकर यह पूरी तरह से पक्का हो गया कि डिकोड सही है तो इसकी जानकारी गृह मंत्रालय को दी गई। 22 फरवरी की देर रात तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के आवास पर एक आपात बैठक बुलाई गई, जिसमें देश की खुफिया एजेंसियों के प्रमुख, गृह सचिव और दिल्ली पुलिस (स्पेशल सेल) के संयुक्त पुलिस आयुक्त नीरज कुमार भी शामिल थे। नीरज कुमार ने बैठक में शुरू से लेकर अंत तक की सारी बातें विस्तार से बताई और खासकर उस कोड के बारे में। इसके बाद सरकार द्वारा वो फैसला लिया गया, जो कभी नहीं हुआ था।

23 फरवरी, 2003 की सुबह-सुबह इंडिया गेट के आसपास बड़ी संख्या में सेना की तैनाती कर दी गई। इसके अलावा सेना के टैंक भी वहां मौजूद थे। अब चूंकि इंडिया गेट के पास ऐसा नजारा लोगों ने कभी नहीं देखा था, लिहाजा वो यह देखकर चौंक गए, क्योंकि अक्सर लोग सुबह-सुबह इंडिया गेट के पास टहलने या जॉगिंग करने के लिए आते थे। इस दौरान लोगों को इंडिया गेट के बिल्कुल पास जाने पर रोक लगा दी गई।

इस घटना का जिक्र नीरज कुमार ने अपनी किताब 'खाकी फाइल्स: इनसाइड स्टोरीज ऑफ पुलिस इन्वेस्टिगेशन' में किया है। उन्होंने बताया है कि 18 फरवरी को उस संदिग्ध ईमेल आईडी पर आखिरी बार मेल आया था। इसके बाद मेल आने पूरी तरह से बंद हो गए। इससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि सेना की तैनाती की वजह से आतंकियों ने इंडिया गेट पर हमला करने का अपना इरादा बदल दिया। बताया जाता है कि इस पूरी साजिश के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का टॉप कमांडर और मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड आतंकी जकीउर रहमान लखवी था। इसी वजह से उस खुफिया कोड को 'दा लखवी कोड' के नाम से भी जाना जाता है।