अनोखी होली जहां शरीर की खाल में घोंपी जाती है छुरी, गाड़े जाते हैं मुंह और बाजुओं के बीच सुंए

होली का त्यौहार अपनेआप में एकता और प्यार को दर्शाता हैं। लेकिन वहीँ इस त्यौहार से जुड़ी कई मान्यताएं और रीती-रिवाज हैं जो विभिन्न प्रदेशों में निभाए जाते हैं। इन रिवाजों में कुछ तो बेहद अनोखे हैं जिनपर यकीन कर पाना ही बहुत मुश्किल होता हैं। ऐसे ही अनोखे रिवाज के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं जो मेरठ शहर से जुड़ा हुआ हैं जहां होली की परंपरा 200 सालों से निभाई जा रही है और इसमें तलवारों का इस्तेमाल किया जाता हैं। इसमें शरीर को सुंओं से बींधते हैं और पेट में तलवार को बांधते हैं। धुलंडी के दिन शाम को गांव में तख्त निकालने की परंपरा भी है। मामला मेरठ शहर से करीब 12 किमी की दूरी पर मौजूद बिजौली गांव का हैं।

मान्यता हैं कि 200 साल पहले गांव में एक बाबा आए थे। उन्होंने धुलंडी पर इस परंपरा की शुरुआत की। उनके समय एक तख्त की शुरुआत हुई थी। ऐसी मान्यता है तभी से गांव में शरीर को बींधकर तख्त निकाले जाते हैं। परंपरा के अनुसार अगर इन तख्तों को न निकाला जाए तो गांव में प्राकृतिक आपदा भी आ सकती है। गांव में बाबा की समाधि भी मौजूद है जहां एक मंदिर बना दिया गया है।

गांव में पहले एक तख्त निकाला जाता था। मौजूदा समय में गांव में सात तख्त निकाले जाते हैं। एक तख्त पर तीन लोग अपने शरीर को बींधकर खड़े रहते हैं। वहीं एक आदमी उनकी देखभाल के लिए रहता है। इसी के साथ-साथ गांव वाले होली के गीतों पर झूमते हुए बुध चौक से निकलते हुए पूरे गांव की परिक्रमा लगाते हैं। इस परंपरा में कुछ लोग ही शामिल नहीं होते हैं, बल्कि पूरा गांव शामिल होता है। पूरा गांव झूमता गाता हुआ पूरे गांव की परिक्रमा करता है। शरीर की खाल में छुरी घोंपी जाती है। मुंह और और बाजुओं के बीच से सुंए गाड़े जाते हैं। पेट में तलवार भी घोंपर जाती है। इस नजारे को देखकर कोई भी अचंभित हो सकता है। शायद ही ऐसा हैरान और रोमांच पैदा करने वाली होली का नजारा कभी किसी ने नहीं देखा होगा।

ताज्‍जुब की बात तो ये है कि होलिका दहन के एक दिन बाद होने वाले इस परंपरा से पहले बींधने वाले लोग अपने शरीर पर होली की राख लगाते हैं, जिससे जख्मों के दर्द को सहन किया जा सके। वहीं जिस छुरी को बदन में घोंपा जाता है, उसका 15 दिन पहले आग में तपाकर जंग साफ किया जाता है। तख्त पर बिंधने वाले लोग रंग-बिरंगे कपड़ों में होते हैं। तख्त को भी सजाया जाता है। पूरे गांव में परिक्रमा के समय गुड़, आटा, रुपये और चादर चढ़ाई जाती है। जितना भी चढ़ावा आता है, उसको गांव के मंदिर में चढ़ाया जाता है। इस परंपरा को देखने के लिए गांव से बाहर रह रहे लोग गांव जरुर आते हैं। पूरे गांव में मेले जैसा माहौल होता है।