वर्तमान समय की बढती तकनिकी ने कई असम्भव कामों को संभव कर दिखाया हैं। कई काम तो ऐसे हैं जिनके बारे में एक आम इंसान कभी सोच भी नहीं सकता हैं। एक ऐसा ही अनोखा करिश्मा हुआ हैं जिसने उजड़े रेगिस्तान को हरा-भरा कर दिया और जिसने भी यह देखा और इसके बारे में जाना वह सोचने पर मजबूर हो गया। दरअसल, तकनिकी की मदद से रेगिस्तान के गर्म वातावरण में तकनीक का इस्तेमाल कर हजारों किलो फल व सब्जियां उगाई जा रही हैं।
रेगिस्तान में समुद्र के खारे पानी और सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर वैज्ञानिकों ने फल, टमाटर और खीरा जैसी सब्जियों को उगाने की तकनीक विकसित की है। दरअसल, ब्रिटेन की ग्रीनहाउस कंपनी सीवाटर ग्रीनहाउस ने ऑस्ट्रेलिया, आबूधाबी, सोमालीलैंड, ओमान और टेनेराइफ के रेगिस्तानों पर एक नवीनतम तकनीक वाली ग्रीनहाउस बनाई है। रेगिस्तान में होने वाली अत्यंत गर्मी से बचने के लिए इस ग्रीनहाउस में मोटे गत्तों का खास तरह से इस्तेमाल कर ठंडक की व्यवस्था की गई है। कंपनी की यह तकनीक बिल्कुल सफल है, जिससे भारी मात्रा में फल और सब्जियां उगाई जा रही हैं।
रेगिस्तान क्षेत्र में बने इस ग्रीनहाउस को शीशे से बनाया गया है। ग्रीनहाउस को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह अंदर के वातावरण को अनुकूल रखता है। इस ग्रीन हाउस के अंदर ठंडक और नमी बनाए रखने के लिए गत्तों से बने कूलिंग हाउस का निर्माण किया गया है। कूलिंग हाउस बनाने में लगे गत्तों को गीला किया जाता है और जब गत्तों पर बाहर से गर्म हवा पड़ती है तो वाष्पीकरण की वजह से भीतर का तापमान कम हो जाता है।
गत्तों को गीला करने के लिए सोलर पंप लगाए गए हैं। यह पंप गत्तों के ऊपर समुंद्र का खारा पानी छिड़कते हैं। यह पानी गत्ते की दीवारों से होता हुआ वाष्पित हो जाता है। वाष्पीकरण होने की वजह से ग्रीनहाउस के अंदर ठंडक पैदा हो जाती है। ग्रीन हाउस की इस अनोखी तकनीक के माध्यम से अंदर का वातारण खेती के अनुकूल हो जाता है।
समुद्र के खारे पानी के वजह से गत्तों पर नमक भी जमा हो जाता है। इस नमक के जमा होने के भी दो फायदे हैं। एक तो नमक के वजह से गत्ते मजबूत बनते हैं और दूसरा इस नमक को व्यावसायिक तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है।
सोमालीलैंड में इस खेत के माध्यम से हर साल करीब 750 टन टमाटर उगाई जा रही है। ग्रीन हाउस का निर्माण करने वाली कंपनी के संस्थापक चार्ली पैटन ने बताया कि वह दूनिया के और इलाकों में इस तरह के प्रोजेक्ट शुरू करने को लेकर उत्साहित हैं। उन्होंने ये भी बताया कि सोमीलैंड में अगर मात्र 2000 हेक्टेयर में ऐसी खेती की जाए तो करीब 40 लाख जनसंख्या का पेट भरा जा सकता है।