इस महिला वैज्ञानिक को आइंस्टाइन भी मानते थे जीनियस

अल्बर्ट आइंस्टाइन के बारे में तो आप सभी जानते हैं कि वे कितने महान वैज्ञानिक थे जिनकी समझ और खोज ने इस दुनिया को विकसित बनाया हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आइंस्टाइन खुद एक महिला की शिक्षा के कायल थे और उन्हें जीनियस मानते थे। हम बात कर रहे हैं एमी नोटर के बारे में जिनके बारे में कहा जाता हैं कि उन्होनें आधुनिक अल्जेब्रा की नींव डाली। तो आइये जानते हैं इस महिला के बारे में आखिर कौन थी ये।

चोरी छोड़ घर में यह काम करने लगा चोर, घटना चौकाने वाली

106 साल पहले इस परिकल्पना से हुई थी परमाणु बम की शुरुआत

जर्मनी में 1882 में जन्मी एमी के पिता मैक्स नोटर गणितज्ञ थे और बैवेरिया के एरलानजन विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे। जब उन्होंने कॉलेज में नाम लिखाना चाहा, उन्हें खारिज कर दिया गया। उस समय महिलाओं को उच्च शिक्षा की इजाजत नहीं थी। बाद में उनसे कहा गया कि यदि शिक्षक उन्हें अनुमति दें तो वे कक्षा में यूं ही बैठ सकती हैं। खैर, उन्होंने पढ़ाई पूरी की, लेकिन जब विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगीं तो शुरू में उन्हें वेतन नहीं दिया जाता था।

इस महिला के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आधुनिक अल्जेब्रा की नींव डाली। उन्होंने क्वांटम थ्योरी की नींव डाली। उनके सिद्धांतों को समझे बगैर आइंस्टाइन के सापेक्षतवाद के सिद्धांत को नहीं समझा जा सकता है। खुद आइंस्टाइन का मानना था कि उनके कठिन समझे जाने वाले सापक्षेतावाद के सिद्धांत को एमी नोटर ने निहायत ही सरल तरीके से सबके सामने पेश कर दिया था। उनकी जीवनी लिखने वाले माइकल ल्युबेला के मुताबिक, इसके बावजूद एमी नोटर के साथ भेदभाव जारी रहा। उन्हें गोटिंजेन विश्वविद्यालय में पढ़ाने की नौकरी नहीं दी दी गई। पढ़ाने की इजाजत मिली तो वेतन देने से साफ इंकार कर दिया गया। लोगों ने तंज किया, 'यह विश्वविद्यालय है, कोई सॉना नहीं।'

सेवाइल विश्वविद्यालय के आण्विक और परमाणु भौतिकी केंद्र के प्रोफेसर मैनुअल लोजानो ने कहा, 'संक्षेप में कहें तो यह सबसे गूढ़ भौतिकी को समझने का आसान तरीका है।' लोजानो कहते हैं, 'यह थ्योरम सैद्धांतिक तौर पर बेहद आसान और गणित के लिहाज से बहुत ही पेचीदा है। यह सिमेट्री और क्वांटिटी के बीच के रिश्ते के बारे में है।' प्रोफेसर साहब कहते हैं, 'कल्पना करें कि मेरे हाथ में वाइन का एक ग्लास है और मैं आपसे आंखें मूंदने को कहूं। आपके आंख मूंदने पर मैं कप को इसके एक्सिस पर उलट दूं और आपसे आंखें खोलने को कहूं। आंख खोलने पर आप शायद यह नहीं समझ पाएं कि कप अपनी जगह से हटाया गया है।' वे आगे बताते हैं, 'लेकिन यदि मैं ग्लास को घुमा दूं और तब आप आंखें खोलें तो आपको लगेगा कि कुछ तो हुआ है।' इसका मतलब? लोजानो के मुताबिक, इसका मतलब यह है कि कप एक एक्सिस पर साइमेट्रिकल है, लेकिन दूसरे एक्सिस पर सिमेट्रिकल नहीं है।

भौतिकी में यह सबको पता है कि ऊर्जा नष्ट नहीं की जा सकती, उसका स्वरूप बदला जा सकता है। इसे 'कनजर्व्ड क्वांटिटी' कहते हैं। लोजानो कहते हैं, 'एमी ने इस कनजर्व्ड क्वांटिटी को सिमेट्री के सिस्टम से जोड़ दिया। भौतिकी की गूढ़ बातों को समझने में इससे मदद मिलती है।' अमेरिका के आयोवा स्टेट विश्वविद्यालय में भौतिकी पढ़ाने वाली माइली सांचेज कहती हैं, 'यह दुनिया का सबसे खूबसूरत थ्योरम है। मैं पहली बार पढ़ते ही इससे प्रेम करने लगी। मेरे छात्र इससे अचंभित हैं।'

जर्मनी में नात्सी ताकतों का उदय होने के बाद एक नियम बनाया गया। इसके तहत सरकारी विश्वविद्यालयों के तमाम जगहों से यहूदियों को बाहर निकाल दिया गया। जीवनीकार ल्युसिबेला के मुताबिक, यहूदी होने की वजह से नोटर को गोटिंजेन विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया। वे यहूदी और गैर यहूदी छात्रों को अपने घर बुला कर पढ़ाने लगीं। पर बाद में उन्हें देश छोड़ना पड़ा। वे अमेरिका चली गईं और प्रिन्सटन विश्वविद्यालय के ब्रिन मॉर कॉलेज से जुड़ गईं।

साल 1935 में नोटर के कूल्हे में एक ट्यूमर हो गया। उसका ऑपरेशन हालांकि कामयाब रहा, पर बाद में उनकी सेहत बिगड़ती चली गई और चार दिनों के बाद उनकी मौत हो गई। वे उस समय सिर्फ 53 साल की थीं। उन्होंने भौतिकी ही नहीं, दूसरे क्षेत्रों में भी काम किया। अल्जेब्रा में उनकी खोज से आधुनिक गणितज्ञों का बड़ा मजबूत आधार मिला। इतने बड़े वैज्ञानिक होने के बावजूद नोटर को उनके ही देश में वह स्थान नहीं मिला, जिसकी हकदार वे थीं। नात्सी सरकार ने उनके योगदान को एक झटके में नकार दिया। उन्हें अमेरिकी विश्वविद्यालय से ही थोड़ा बहुत सहारा मिला।