वैज्ञानिक का खतरनाक प्रयोग, बना ड़ाला दो सर वाला कुत्ता

अक्सर आपने लोगों को कहते हुए सुना ही होगा की वैज्ञानिक का दिमाग सवालों से भरा होता है और इसके चलते ही वे कई प्रयोगों को अंजाम देते हैं। वैज्ञानिक द्वारा की गई खोज जीवन में विकास लेकर आती हैं, लेकिन कभीकभार यह खोज आम जनता के लिए रोचक भी साबित होती हैं। आज हम आपको एक वैज्ञानिक द्वारा की गई खतरनाक खोज से जुड़ी जानकारी देने जा रहे है जिसमें वैज्ञानिक ने दौ सर वाला कुत्ता बना दिया था। तो आइये जानते हैं इससे जुड़ी पूरी जानकारी के बारे में।

1950 के दशक में रूस के एक वैज्ञानिक व्लादिमीर पेत्रोविच डेमीखोव ने एक कुत्ते पर बेहद खतरनाक इस्तेमाल किया था। अंग प्रत्योपण पर अपने रिसर्च के दौरान उन्होंने एक कुत्ते के सिर पर एक साथ किसी दूसरे कुत्ते का भी सिर प्लांट किया था। इस तरह का इस्तेमाल इतिहास में पहली बार किया गया था। लेकिन, इसके कुछ दिनों बाद ही उन दोनों कुत्तों की मृत्यु हो गई। आज खतरनाक साइंस की सीरीज़ में जानवर पर किए गए एक ऐसे बर्बरतापूर्ण इस्तेमाल के बारे में जानिए जो आपके रौंगटे खड़े कर देगा।

13 जनवरी, 1959 में रूस के एक वैज्ञानिक व्लादिमीर डेमीखोव ने एक विचित्र इस्तेमाल किया था।व्लादिमीर एक अंग प्रत्योपण विशेषज्ञ थे। वह कई वर्षों से इस विषय पर रिसर्च कर रहे थे। उन्होंने कई जानवरों के अंगों का ट्रांसप्लांट किया था। जिसके बाद वर्ष 1959 में उन्होंने एक बेहद खतरनाक इस्तेमाल को अंजाम दिया।

व्लादिमीर ने एक जिंदा कुत्ते के सिर पर एक साथ किसी दूसरे कुत्ते का सिर प्लांट किया था। इस तरह का अजीबोगरीब इस्तेमाल पहली बार किया था। अपनी इस इस्तेमाल के बाद व्लादिमीर एक दो सिर वाला कुत्ता बनाने में पास तो रहें पर कुछ ही दिनों बाद उन दोनों की मौत हो गई।

व्लादिमीर इससे पहले करीब 20 बार ऐसा इस्तेमाल कर चुका था, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।वह ज्यादातर दो भिन्न-भिन्न नस्ल के कुत्तों का प्रयोग करता था। इस इस्तेमाल के लिए भी व्लादिमीर ने दो नस्ल वाले कुत्तों को प्रयोग किया था, एक जर्मन शेफर्ड व दूसरा ब्रॉडीगा। उसने जर्मन शेफर्ड के निचले शरीर के नीचे ब्रॉडीगा की गर्दन के समान चीरा लगा दिया था। जिसके बाद प्लास्टिक स्ट्रिंग्स का प्रयोग कर ब्रॉडीगा के सिर को जर्मन शेफर्ड के शरीर में प्लांट किया गया। छोटे कुत्ते के सिर को बड़े कुत्ते के पेट से नहीं जोड़ा गया था। जिस वजह से उसे ट्यूब के माध्यम से खिलाया जाता था।

व्लादिमीर को इस ऑपरेशन में साढ़े तीन घंटे लगे थे। इसके बाद उन दोनों कुत्तों के सिर फिर से जीवित हो गए थे। वह दोनों आराम से सुन, देख, सुंघ व निगल सकते थे। हालांकि, ब्रॉडीगा की पेट नहीं होने के वजह से वह जो कुछ भी पीती थी वह ट्यूब से होकर बाहर गिरता था। व्लादिमीर की कड़ी मेहनत व देखभाल के बाद भी ये दोनों कुत्ते केवल 4 दिनों तक ही जिंदा रहे। अपने इस इस्तेमाल को लेकर व्लादिमीर को दुनियाभर में आलोचना का सामना करना पड़ा।

वर्ष 1968 में भी व्लादिमीर ने इस इस्तेमाल को दुबारा करने की प्रयास की थी। हालांकि, इस बार दोनों कुत्ते करीब 38 दिनों तक जिंदा रहे थे। वर्ष 1988 में इन दोनों की बॉडी को रीगा म्यूजियम में संजोकर रखा गया।