
टोयोटा के चेयरमैन अकीओ टोयोडा ने हाल ही में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की पर्यावरणीय प्रभाव पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि EVs को पूरी तरह से 'क्लीन एनर्जी' नहीं माना जा सकता, क्योंकि इनकी बैटरियों के निर्माण और चार्जिंग के लिए आवश्यक ऊर्जा स्रोतों से प्रदूषण होता है। भारत जैसे विकासशील देशों में, जहां चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता सीमित है, हाइब्रिड तकनीक को अधिक व्यावहारिक और पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त माना जा रहा है।
मुख्य बिंदु
बैटरियों का पर्यावरणीय प्रभावEVs की बैटरियों के निर्माण में लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसी धातुओं का खनन होता है, जो पर्यावरणीय दृष्टि से हानिकारक है। इसके अलावा, इन बैटरियों के निर्माण और परिवहन में भी कार्बन उत्सर्जन होता है।
चार्जिंग के लिए ऊर्जा स्रोतयदि EVs की चार्जिंग के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली कोयला या गैस जैसे प्रदूषणकारी स्रोतों से आती है, तो इन वाहनों का कुल पर्यावरणीय प्रभाव बढ़ जाता है।
हाइब्रिड तकनीक का महत्व
टोयोटा ने अब तक 27 मिलियन से अधिक हाइब्रिड वाहनों की बिक्री की है, जो EVs की तुलना में कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता नहीं होती।
भारत में हाइब्रिड वाहनों की उपयुक्तताभारत में चार्जिंग स्टेशन की कमी और बिजली आपूर्ति की समस्याओं को देखते हुए, हाइब्रिड वाहनों को अधिक व्यावहारिक और पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त माना जा रहा है।
अकीओ टोयोडा की टिप्पणियाँ इस बात की ओर इशारा करती हैं कि EVs के पर्यावरणीय प्रभाव को केवल उनके 'नो टेलपाइप एमिशन' से आंकना उचित नहीं है। बैटरियों के निर्माण, चार्जिंग के लिए आवश्यक ऊर्जा स्रोतों और अन्य कारकों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। भारत जैसे देशों में, जहां चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता सीमित है, हाइब्रिड तकनीक को अधिक व्यावहारिक और पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त माना जा रहा है।