
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें 273.5 करोड़ रुपये की जीएसटी पेनल्टी को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति शेखर बी. सर्राफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने कहा कि जीएसटी एक्ट की धारा 122 के तहत टैक्स अधिकारी पेनल्टी लगाने के लिए स्वतंत्र हैं और इसके लिए आपराधिक अदालत में मुकदमे की आवश्यकता नहीं है।
पेनल्टी सिविल प्रकृति की, क्रिमिनल नहींअदालत ने स्पष्ट किया कि जीएसटी पेनल्टी सिविल प्रकृति की होती है। इसके लिए क्रिमिनल ट्रायल या कोर्ट की कार्यवाही जरूरी नहीं है। विभागीय जांच के आधार पर भी कार्रवाई की जा सकती है।
कैसे शुरू हुआ था मामला?19 अप्रैल 2014 को डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) ने पतंजलि को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। आरोप था कि कंपनी ने संदिग्ध फर्मों से लेन-देन किया जिनके पास ठोस आयकर दस्तावेज नहीं थे।
इन फर्मों से लिए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) को गलत तरीके से ट्रांसफर किया गया।
तीन राज्यों की यूनिटें जांच के दायरे मेंजांच में हरिद्वार (उत्तराखंड), सोनीपत (हरियाणा) और अहमदनगर (महाराष्ट्र) स्थित पतंजलि की यूनिट्स को शामिल किया गया था। विभाग ने पाया कि कई मामलों में बेची गई वस्तुओं की मात्रा आपूर्तिकर्ता से खरीदी गई मात्रा से ज्यादा थी। इससे संकेत मिला कि ITC का दुरुपयोग किया गया।
सेक्शन 74 के तहत नोटिस वापस, लेकिन 122 के तहत कार्रवाई जारीहालांकि, जनवरी 2025 में टैक्स विभाग ने सेक्शन 74 के तहत नोटिस वापस ले लिया, लेकिन उन्होंने धारा 122 के तहत दंडात्मक कार्रवाई जारी रखी।
पतंजलि का तर्क और कोर्ट का जवाबपतंजलि का पक्ष: कंपनी का कहना था कि धारा 122 के अंतर्गत लगाया गया दंड आपराधिक प्रकृति का है, और इसे केवल आपराधिक अदालत के मुकदमे के बाद ही लगाया जा सकता है।
कोर्ट का उत्तर: अदालत ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि सेक्शन 122 की कार्रवाई सिविल है, और इसके लिए क्रिमिनल कोर्ट की प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद अब पतंजलि को 273 करोड़ रुपये की जीएसटी पेनाल्टी के मामले में विभागीय कार्रवाई का सामना करना होगा। यह फैसला टैक्स प्रशासन की प्रक्रिया को वैध और संवैधानिक ठहराता है।