राजस्थान की सियासत में एक बार फिर कांग्रेस की गुटबाजी खुलकर सामने आ गई। शनिवार की रात कोटा रेलवे स्टेशन पर वह दृश्य देखने को मिला जिसने पार्टी की अंदरूनी एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जैसे ही ट्रेन से उतरे, स्टेशन परिसर नारेबाजी से गूंज उठा। एक ओर पूर्व मंत्री शांति धारीवाल के समर्थक थे, वहीं दूसरी ओर प्रहलाद गुंजल के समर्थक। दोनों गुटों के बीच तीखी झड़प और धक्का-मुक्की के चलते स्टेशन पर माहौल तनावपूर्ण हो गया।
पुलिस ने संभाला मोर्चा, गहलोत ने लिया किनारास्थिति बिगड़ती देख मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने हस्तक्षेप किया और दोनों पक्षों को अलग करने की कोशिश की। हालांकि, समर्थकों की बहस इतनी गर्म हो गई कि पुलिस को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान न तो धारीवाल और न ही गुंजल वहां नजर आए। दोनों ही नेता गहलोत के स्वागत के लिए स्टेशन नहीं पहुंचे। माहौल बिगड़ता देख गहलोत ने बिना समय गंवाए अपनी गाड़ी में बैठकर सीधे बारां जिले के अंता उपचुनाव प्रचार के लिए रवाना हो गए।
नेताओं की ताकत दिखाने में जुटे समर्थकपिछले कुछ महीनों से कोटा में कांग्रेस के दो गुटों के बीच वर्चस्व की जंग जारी है। बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए प्रहलाद गुंजल और वरिष्ठ नेता शांति धारीवाल, दोनों अपने-अपने समर्थक समूहों के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन करते रहते हैं। जब भी पार्टी का कोई बड़ा कार्यक्रम या नेता कोटा पहुंचता है, तो दोनों खेमों के कार्यकर्ता नारेबाजी कर अपने नेता की ताकत दिखाने में पीछे नहीं रहते।
पहले भी भड़का है विवाद, पर्यवेक्षक के सामने हुआ था हंगामाकुछ हफ्ते पहले कांग्रेस जिला अध्यक्ष के चयन के दौरान भी यही स्थिति देखने को मिली थी। दिल्ली से आए पर्यवेक्षक के सामने कांग्रेस कार्यालय में दोनों खेमों के समर्थकों ने हंगामा किया और अपने-अपने नेताओं के पक्ष में जमकर नारे लगाए। बताया जाता है कि शांति धारीवाल लंबे समय से अशोक गहलोत के करीबी माने जाते हैं, जबकि प्रहलाद गुंजल का झुकाव गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट गुट की ओर है।
तीन चुनावों की पुरानी रंजिश अब भी बाकीधारीवाल और गुंजल की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कोई नई नहीं है। बीजेपी में रहते हुए गुंजल तीन बार धारीवाल के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इनमें से दो बार धारीवाल ने जीत दर्ज की, जबकि एक बार गुंजल ने उन्हें परास्त किया। अब भले ही दोनों एक ही पार्टी में हों, लेकिन उनके समर्थकों के बीच पुरानी रंजिश अब भी खत्म नहीं हुई है।
गुटबाजी ने बढ़ाई कांग्रेस की चिंताकांग्रेस के लिए यह स्थिति चिंताजनक है, खासकर तब जब उपचुनाव जैसे अहम मौके पर पार्टी को एकजुटता दिखानी चाहिए थी। कोटा में बार-बार सामने आ रही यह अंदरूनी तनातनी पार्टी नेतृत्व के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन चुकी है। यदि इस गुटबाजी पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह कांग्रेस की भविष्य की रणनीति को कमजोर कर सकती है।